यह प्रश्न आज से 50 साल पहले भी पूछा जाता तो कोई इस पर यकीन नहीं करता। मगर जिस तरह इन कुछ सालों में दुनिया बदली है। विकास की परस्पर प्रतिस्पर्धा बढ़ी है। यह सवाल सिर्फ सवाल न हो कर एक चिंता का विषय बन चुका है। अगर पृथ्वी से सारे जानवर विलुप्त हो जाए तो जाहिर तौर पर मनुष्य भी विलुप्त हो सकते हैं क्योंकि हर जीवित चीज एक-दूसरे पर परस्पर निर्भर है। कोई जानवरों के बिना दुनिया की कल्पना कैसे कर सकता है? एक छोटे से सूक्ष्म जीव से लेकर नीले व्हेल तक वायुमंडलीय नाइट्रोजन को हल करता है, हमारे वातावरण में संतुलन को बनाए रखने के लिए प्रत्येक पशु महत्वपूर्ण है।
उदाहरण के लिए, हम जानते हैं कि सभी मनुष्यों को जीवित रहने के लिए खाना चाहिए। हमें पौधों और जानवरों से भोजन मिलता है इस दुनिया में शाकाहारियों की तुलना में अधिक मांसाहारी हैं यदि सभी जानवर विलुप्त हो जाएंगे तो इस दुनिया की पूरी आबादी अपने भोजन के लिए पौधों पर निर्भर हो जाएगी। पौधों को पौष्टिक भोजन की आवश्यकता होती है और मिट्टी में मौजूद सूक्ष्म जीवों को कार्बनिक पदार्थों को पोषक तत्वों में विघटित करने और पौधों को आपूर्ति करने की आवश्यकता होती है, कल्पना कीजिए कि वे सूक्ष्म जीव विलुप्त हो जाए तो उन पौधों का विकास कैसे संभव है।
दूसरा, अगर इस धरती पर सारे ही जानवर नष्ट हो जाए तो हमारे वायुमंडल में कार्बन डाई ऑक्साइड की मात्रा बढ़ जाएगी और यह ग्लोबल वार्मिंग का कारण बनेगी जो ओजोन परत को नष्ट कर देता हैम और अंत में मनुष्य भी विलुप्त होने का सामना कर सकते हैं।
दुर्भाग्य से, अगर सभी जानवरों की मृत्यु हो गई तो यह कई पौधों का विलुप्ति का कारण भी बनेगी। जानवरों के बिना, कई पौधे परागण नहीं पाएंगे, इसलिए हम कई खाद्य फसलों को खो देंगे। बाकी हाथ-परागण हो सकता है, लेकिन हर किसी को खिलाने के लिए पर्याप्त पैमाने पर नहीं।
वहीं दूसरी ओर कीड़े, बीटल्स और अन्य जानवरों के सहयोग के बिना फसलों को व्यवस्थित रूप से बढ़ाने के लिए मिट्टी की स्थिति को बनाए रखना असंभव तो नहीं है, मगर यह करना मुश्किल जरूर होगा। क्योंकि हर काम इंसानी हाथों द्वारा करना और वो भी जो प्रकृति का काम है यह इतना सरल नहीं होता। साथ ही परागणकों और बीज फैलाने वाले कारक भी जानवरों पर निर्भर होते हैं।
जानवर भी इस पृथ्वी को सुचारू रूप से चलाने के लिए अहम भूमिका निभाते हैं। यह कई परेशानियों को ले कर आएगी इससे वर्षा का भी अचानक नुकसान होगा, वायुमंडलीय परिवर्तन और जलवायु परिवर्तन होगा। अपघटन की कमी के कारण बड़े पैमाने पर भुखमरी से बड़े पैमाने पर बीमारी हो सकती है।
मौजूदा दौर में मानव जिस तरह प्रकृति की अनदेखी कर रहा है उससे वो खुद को विलुप्ति की कगार पर पहुंचा रहा है। और लोगों को पता था कि यह हो रहा है और इसके लिए तैयार है, तो संभवतः हम मानवता के कुछ अंश को संरक्षित करने का प्रबंधन कर सकते हैं। लेकिन, इस तथ्य के बारे में हमारी उदासीनता को देखते हुए कि हम पहले से ही एक बड़े पैमाने पर विलुप्त होने के कारण अगली शताब्दी में 30-50% प्रजातियों को नष्ट करने की उम्मीद कर रहे हैं, मुझे संदेह है कि हम भी कोशिश करेंगे।
हमें जल्दी ही इस पर ध्यान देना होगा क्योंकि कहीं ऐसा न हो जब तक हम इस विषय पर अपनी गंभीरता व्यक्त करें तब तक काफी देर न हो जाए। हमें जल्द से जल्द इस पर अहम पहल करनी होगी। ताकि यह कल्पना हमेशा कल्पना पर ही सिमिति रहे, कभी यथार्थ में न हो। क्योंकि इस परेशानी ने अगर यथार्थ रूप धारण कर लिया तो इससे निपटपाना सम्पूर्ण मानव जाति के लिए बेहद मुश्किलों वाला हो जाएगा।
Yes mai sahmat hu
thanks
Bihar accha nibhand hai
Very nice written