मेंडल के वंसागति के नियम को अनुवांशिकता का नियम कहते है। अनुवांशिकता के सिद्धांत के अनुसार एक पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी के लक्षणों का स्तनांतरण होता है। मेंडल ने ये प्रयोग मटर के पौधे पे किया था। उन्होंने सात जोड़ी ऐसे लक्षणों को ले के प्रयोग किया। और नयी पीढ़िया प्राप्त की या फिर आप कह सकते है की नयी पीढ़ियों की खोज की। मेंडेल को हम अनुवांशिकता का जनक भी कहते है। इन्होने 1856 से 1865 तक अनुवांशिकता पर प्रयोग किये। इसे हम मेंडल के नियम से भी जानते है। अगर हम आसान भाषा में बात करे तो यह विज्ञानं की एक शाखा है जिससे अनुवांशिक कारको और लक्षणों का अध्यन किया जाता है। अनुवांशिक को हम जीव विज्ञानं की शाखा के रूप में भी जानते है। मेंडल का पूरा नाम ग्रेगर जॉन मेंडेल था। हमारे दुनिया में जितने भी जीव है वो सब अपने पूर्वजो के प्रतिरूप होते है। माता पिता के गुणों का अपने बच्चो में आना आनुवांशिकता का रूप है । तो चलिए जान लेते है मेंडल के नियमो के बारे में।
पहला नियम (प्रभाविकता का नियम):-
प्रथम नियम के अनुसार मेंडल ने बताया की किसी जीव की अनुवंशकिता उसके परिजनों यानि माता पिता की जनन द्वारा होती है। इसका प्रयोग इन्होने मटर के पौधे पर किया था। यदि कोई दो कारक हो ओर अगर वो दोनों सामान न हो तो इनमे से एक कारक दूसरे कारक पर आसानी से प्रभावी हो जायेगा। इसे प्रभाविकता का नियम भी कहते है। इसमें अगर एक गुण प्रकट होता है तो उसके दूसरे गुण दिखाई नहीं देते। चलिए इसे एक उद्धरण के तौर पर समझ लेते है। जब हम एक लम्बे पौधे और एक बौने पौधे का संलंग्न करवाते है तो पहली पीढ़ी के पौधे समानुगी लंबे पाए गए और इसे प्रभावी माना गया जबकि बौने पौधे को अप्रभावी पाया गया।
दूसरा नियम (विसंयोजन का नियम):-
जोड़ा बनने के बाद हम इसे युगम भी कह सकते हैं। एलिल के सदस्य अलग हो जाते हैं। इसे हम सुधता का नियम भी कहते हैं। इसमें जोड़े अलग होकर दूसरे युमों में चले जाते हैं।
चलिए, इसे भी उदहारण से समझ लेते हैं। पहली पीढ़ी में लम्बे पौधे में जब स्वनिषेचन कराया जाता है, दूसरी पीढ़ी के युग्म में संकरण हो जाता है। अलग पौधे वाले लक्षण प्राप्त होते हैं।
तीसरा नियम (स्वतन्त्र अपव्यूहन का नियम):-
इस नियम को दयिसंकर का प्रयोग भी कहा जाता है। इस नियम के अनुसार दो जोड़ी विप्रयासी पौधों का मध्य संकरण करवाया जाता है। इसमें गोलाकार और पीले मटर के बीज तथा झुर्रीदार बीज वाले मटर के बीच संकरण करवाया जाता है। इसमें सभी पौधे पीले और गोल आकार के मिलते हैं।
अनुवांशिक का प्रयोग पालतू पसुओं, कृषि, पौधों आदि के रूप में किया जाता है। इस नियम में पौधे संकरण किए जाते हैं। मंडल ने जब इसका प्रयोग मटर के बीज में किया तो पाया की इसमें नयी पीढ़ी है। जिस प्रकार माता पिता के गुण उनके बच्चो में आते हैं, उसी प्रकार उन्होंने पाया की मटर का संकरण होता है। अनेक वैज्ञानिकों ने बताया की अनुवांशिक अध्ययन जटिल नहीं है। इसका मुख्य कारण यह पाया गया की एक शिशु को पैदा होने में नौं महीने लग जाते हैं और उसका विकास करने में कम से कम बीस साल लग जाते हैं। पीढयों के अध्ययन के लिए कम से कम सौ साल से दो सौ साल लग जाते हैं। इंसानो के जीवरासायनिक का अध्यन पहली बार लंदन में किया गया था। अगर हम बिलकुल आसान भाषा में कहना चाहें तो हम कह सकते हैं की अनुवांशिक वह विज्ञान है जिसमें अनुवांशिक के जीवों तथा उनकी उत्पति को विकसित होने की सम्भावनाओं का अध्यन किया जाता है।
Test cross bnakar bhejo
Hame yah sb padh kr bahut Bassic jaankari hui ..ye sb pta toh that..but hmm ache se diffine kr pate the..thanx a lot sir
Deffine nhi kr pate the🙅
इस नियम मे मटर के नीले व सफेद फुल भी शामिल है…
Hnn ya parh Ka achha feel hua
१ question h ki sbhi logo ke face me deffrence kyu hota
sabka genes alag alag hota hai
Sir gunsutriya Siddhant kisne diya h vanshagati ka
Mast knowledze
Thanks for a lot of knowledge 🙏
Pleasr reply dena sir
sabka genes alag alag hota hai