जीवों के शरीर में विभिन्न प्रकार के विषैले पदार्थ इकठा हो जाते है, इन्ही उपापचयी खंडो से विषैले पदार्थो के निकलने को उत्सर्जन कहा जाता है एवं इस पूरी प्रक्रिया को उत्सर्जन तन्त्र कहते है| मनुष्य में मुख्य उत्सर्जन अंग वृक्क, फेफड़े, यकृत, एवं त्वचा को माना जाता है|
यहाँ हम उत्सर्जन तन्त्र से जुड़े अंगो का विश्लेष्ण करेंगे, जो इस प्रकार है:-
वृक्क:
वृक्क के आकृति सेम के बीज के समान होती है, एवं मनुष्य के साथ दूसरे सभी स्तनधारियो में एक जोड़ा वृक्क उपस्थित होता है, जिसका कुल वजन १४० ग्राम के आस-पास माना जाता है| वृक्क के २ भाग होते है जिसमे कोर्टेक्स को बाहरी भाग एवं मेडुला को आन्तरिक भाग कहा गया है| प्रत्येक वृक्क १,३०,००००० वृक्क नलिकाओं से मिलकर बना होता है जिसे विज्ञानं की भाषा में नेफ्रोन कहा जाता है और यह वृक्क का प्राथमिक इकाई होती है| प्रत्येक नेफ्रोन में प्याले जैसी सरंचना होती है जिसे बोमेन सम्पुट कहा जाता है|
एक वृक्क में १० लाख के आस-पास नेफ्रोन उपस्थित होते है| मनुष्य में इसकी संख्या २० लाख तक होती है| बोमन सम्पुट सूक्ष्म रक्त कोशिकाओ से मिलकर निर्मित होता है जिसमे २ प्रकार के कोशिकाए होती है, एक को चौड़ी अपवाही धमनिका एवं दूसरी को पतली अपवाही धमनिका कहा जाता है| चौडी धमनिका रक्त को कोशिका गुच्छ तक ले जाने में सहायक होती है जबकि पतली अपवाही धमनिका रक्त को कोशिक गुच्छ से वापस ले जाने का कार्य करती है|
वृक्क के प्रमुख कार्य:
वृक्क का सबसे महत्वपूर्ण कार्य शरीर से अपशिष्ट पदार्थ का विसर्जन करना है अर्थात सबसे पहले यह रक्त के प्लाज्मा को छानकर उसे शुद्ध बनाता है, शुद्धता से अर्थ है कि यह अनावश्यक पदार्थो को जल के बूंदों के साथ मिलाकर उसे मूत्र के द्वारा शरीर से बाहर कर देता है| ग्लोमेरुलस की ध्मनिकाओ से द्रवीय पदार्थ छानकर बोमेन सम्पुट में इकठा होता रहता है, जिसे परानिस्प्न्दन की प्रक्रिया कहा जाता है|
वृक्क की रक्त आपूर्ति अत्यधिक होती है, जबकि दूसरे आन्तरिक अंगो की इससे थोड़ी कम होती है| वृक्क में १ मिनट में १२५ मिली. रक्त अर्थात पूरे दिन में १८० ली. के करींब रक्त का शोधन होता है, जिसमे से १.४५ ली. के लगभग मूत्र बनता है और बाकि शोधित वापस रुधिर में अवशोषित हो जाता है|
समान्य मूत्र हल्के पीले रंग का होता है जो उसमे मौजूद यूरोक्रोम नामक वर्णक के कारण होता है और यह वर्णक हीमोग्लोबिन के खंडन से बनता है| एक स्वस्थ जीव के मूत्र में ९५% पानी, ०.३% यूरिक एसिड, २% लवण, और २.7% यूरिया होते है, किन्तु किसी बीमार जीव में इसकी मात्र कम या ज्यादा हो सकती है| समान्यता मूत्र अम्लीय होता है जिसका PH संतुलन 6 माना जाता है|
वृक्क की बाहरी सतह उत्त्नुमा एवं इसकी अंदर की सतह अवतलनुमा होती है| वृक्क के भीतर जो प्राक्रतिक रूप से पथरी निर्मित होती है उसे कैल्शियम आक्सीलेट कहा जाता है|
फेफड़े:
फेफड़े मुख्य रूप से दो प्रकार के गैसीय पदार्थो का उत्सर्जन करते है जिसमे से एक होता है कार्बनडाईऑक्साइड एवं दूसरा जलवाष्प| कुछ पदार्थ में वाष्पशील अवयव पाए जाते है जैसे प्याज, लहसुन एवं विशेष प्रकार के मसाले, उनका भी उत्सर्जन फेफड़ो द्वारा किया जाता है|
यकृत:
यकृत में सर्वाधिक यूरिया बनता है जो वृक्क के द्वारा बाहर निकाल दिया जाता है| यकृत की कोशिकाए रक्त के अमोनिया एवं अमीनो एसिड को यूरिया में परिवर्तित करती है जिसका उत्सर्जन के लिए अहम् योगदान रहता है|
त्वचा:
मनुष्य की त्वचा में स्वेद ग्रन्थिया एवं तैलीय ग्रन्थिया पाई जाती है जो पसीने के द्वारा शरीर से उत्सर्जन का कार्य करती है, इसलिए कहा जाता है कि, पानी का सेवन अधिक मात्रा में करना चाहिए, जिससे पसीने एवं मूत्र के द्वारा शरीर के अपशिष्ट पदार्थो को उत्सर्जन हो सके|
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