पादप उत्तक को समझने से पूर्व आपको यह जानना होगा कि उत्तक क्या है? समान्य भाषा में कहे तो उत्तक किसी जीव विशेष में मौजूद कोशिकाओं के समूह को कहा जाता है, जिनकी उत्पत्ति, सरंचना एवं कार्य प्रणाली एक समान हो, उन्हें उत्तक या Tissue कहा जाता है| कई बार उत्तको के आकार असमान हो सकते है किन्तु कार्य करने का तरीका हमेशा एक जैसा होगा| उत्तको के अध्ययन करने के उत्तक विज्ञानं या Histology कहा जाता है|
उत्तक के प्रकार:
प्रमुख रूप से उत्तक के २ प्रकार है, जन्तु उत्तक एवं पादप उत्तक| जन्तु उत्तक एवं पादप उत्तक की विभिन्न श्रेणिया निश्चित की गई है, यहाँ हम पादप उत्तक के बारे में अध्ययन करेंगे|
पादप उत्तक:
पादप उत्तक को मुख्य रूप से दो भागो में विभक्त किया गया है, जो इस प्रकार है:
विभाज्योतकी उत्तक:
पौधे के वृद्धि क्षेत्र को या बढ़ते हुए भाग को विभाज्योतक कहा जाता है, इनमे उत्पन्न होने वाली कोशिकाए पौधे की अधिकाधिक वृद्धि करने में सहायता करती है एवं विभिन्न प्रकार के अंगो का निर्माण करती है| पौधे के बढने की यह प्रक्रिया जीवन भर चलती रहती है|
विभाज्योतिकी उत्तको के कुछ विशेष प्रकार के लक्षण इस प्रकार है:
– विभाज्योतिकी उत्तक आकार में बहुभुजाकार या अण्डाकार होते है एवं इनकी भित्तिया एकसार एवं बहुत पतली होती है|
– इन उत्तको मे अन्त्र्कोश्कीय जगह का काफी अभाव होता है एवं केन्द्रक का आकार बड़ा, रसघनी सूक्ष्म एवं जीवद्रव्य सघन मात्रा में पाया जाता है|
विभाज्योतिकी उत्तक के प्रमुख प्रकार इस प्रकार है:
शीर्षस्थ विभज्योतक:
जिस प्रकार इसके नाम से स्पष्ट हो रहा है, यह उत्तक पादप के जडो या तने के शीर्ष पर पाया जाता है| इन्ही को पौधे की लम्बाई के लिए जिम्मेवार माना जाता है|
पार्श्व विभज्योतक:
इस प्रकार के उत्तको को पौधे के मोटाई एवं तने की मजबूती का श्रेय प्रदान किया गया है, ये आपस में विभाजित होकर पौधे के तने एवं जड़ो में वृद्धि प्रदान करते है|
अन्तरवेशी विभज्योतक:
ये उत्तक भी शीर्षस्थ उत्तक के समान पौधे की लम्बाई में वृद्धि करने के लिए जाने जाते है, किन्तु मध्य में स्थायी उत्तक के आ जाने से ये उनके (शीर्षस्थ उत्तक) अवशेष के रूप में जाने जाते है| ये घास जैसे पौधे के लिए अत्यंत लाभकारी है क्योकि उनके ऊपर के भाग को अनेक शाकाहारी पशु आदि खा जाते है, अन्तरवेशी विभज्योतक के कारण उन्हें शीघ्रता से बढने में सहायता मिलती है|
स्थायी उत्तक
परिपक्व कोशिकाओ से निर्मित इसे उत्तक जो अपनी विभाजन की क्षमता पूर्ण रूप से खो चुके है, इस उत्तको को स्थायी उत्तक कहा जाता है| कई बार उत्तक या कोशिकाए विभिन्न कार्य-कलापों को पूरा करने हेतु विभेदित हो जाते है| इनमे संयोजित कोशिकाए मृत या सजीव दोनों में से कोई भी हो सकती है|
स्थायी उत्तको के प्रकार इस प्रकार है:
सरल उत्तक:
इस उत्तक का निर्माण एक प्रकार के कोशिका के समावेश से बना होता है, अर्थात इसके निर्माण में जटिलता नहीं होती, इसलिए इसे सरल उत्तक कहा जाता है|
जटिल उत्तक:
स्थायो उत्तको में एक या एक से अधिक कोशिकाओं का समावेश हो तो इसे जटिल उत्तक का संयोजन कहा जाता है|
जाइलम:
यह एक प्रकार का संवहन उत्क है जिसका प्रमुख कार्य पौधे को दृढ़ता प्रदान करना एवं खनिज एवं लवणों को पहुचाना है| इसके कई बार काष्ठ कहकर भी पुकारा जाता है| किसी पौधे की आयु का पता लगाने के लिए जाइलम के वलय को देखकर एवं गिनकर उसका अनुमान लगाया जाता है| इस प्रक्रिया को डेन्ड्रोक्रोनोलोजी कहा जाता है|
फ्लोएम:
यह भी एक प्रकार का संवहन उत्तक है, जिसका कार्य पौधे की पत्तियों द्वारा निर्मित भोज्य पदार्थों को पौधे के अन्य प्रमुख भागों तक पहुचाना है|
Thanks
Nice topic, and interesting to read . Thanks
थैंक्स
Thanks for again
Thankes is topic ke liye
Plant tesu
Thanks, very good tpoic
थैंक्स
प्रतिक्रिया
Bakwavas
Thanks
Sir please iske kuch examples bhi dal dijiye.
nice topic you are my dear sir
Thanks