आम तौर पर माना जाता है कि जानवरों द्वारा किये गए आपसी संदेशों में कोई विशेष अर्थ तो नहीं होता। इन संदेशो को सिर्फ खतरे का संकेत देने या एक-दूसरे को डराने या नर-मादा का एक दुसरे को आकर्षण करने तक ही सिमित है। मगर मधुमक्खियों और चीटियों के विषय में यह बात मायने नहीं रखती। दरअसल मधुमक्खियां अपनी नृत्य भाषा का उपयोग कर काफी समय पहले खोजे हुए और कहीं दूर पर भोजन भंडार की जानकारी एक-दूसरे को सुव्यवस्थित रूप से देने में उपयोग करते हैं। इस बात की संभावना लगायी जा सकती है कि मनुष्य की भाषा के समान मधुमक्खियों की नृत्य भाषा भी एक सांकेतिक भाषा का रूप है। जिस तरह इंसान की भाषाओं में विभिन्न ध्वनियों और उनके अर्थ का सांकेतिक सम्बंध जुड़ा होता है उसी तरह से मधुमक्खियों की नृत्य भाषा भी है।
इंसान की प्रवृति की तरह मधुमक्खी की भी प्रवृति होती है वो भी सिर्फ अपनी नहीं बल्कि अपने सगे सम्बंधियों के हितों को भी सुरक्षित करने का ध्यान रखा जाता है। इसी प्रवृत्ति के तहत मधुमक्खियां अपनी बहनों के लिए अपना जीवन भी न्यौछावर करने से भी पीछे नहीं हटती। इस दुनिया में रहने वाला हर व्यक्ति अनोखा है। इसी प्रकृति में कुछ ऐसे जीव भी है जिनमें असीमित स्वार्थपन उपजता है, तो वहीं कई जीवों में कमाल का स्वार्थत्याग भी उपस्थित है। जहाँ एक ओर निर्दयता है, तो वहीं दूसरी ओर असीमित माया और ममता भी देखने को मिलती है।
इस रहस्य को सुलझाने का श्रय ब्रिटिश वैज्ञानिक जे. बी. एस. हाल्डेन को जाता है जो बहुमुखी प्रतिभा के धनी है। इन्होने ब्रिटेन और फ्रांस द्वारा सुएज नहर पर हमला करने का खुलकर विरोध किया और इसी के चलते वे भारत आ कर रहने लगे।
हर प्राणी की रचना और कार्य करने की प्रकृति उसके जीन्स पर निर्भर करती है। इसीलिए जीन्स के द्वारा ही प्राकृतिक चयन किया जा सकता है। यही संसार चलाने का नियम भी है हर जीव अपने जीन्स को अपनी आने वाली पीढ़ी में भेजता है। और यही काम हमारे समाज या परिवार के अन्य लोग भी करते हैं। इस बात से यह तो स्पष्ट है कि प्राकृतिक चयन का एक भाग सिर्फ स्वयं की रक्षा करना या प्रजनन करना ही नहीं है बल्कि अपने सगे-सम्बंधियों की सुरक्षा और प्रजनन से सम्बंधित भी है। हाल्डेन इस बात को समझ गए थे, उनका एक बार का किस्सा काफी मशहूर है दरअसल हुआ यह कि एक दिन वे अपने वैज्ञानिक दोस्तों के साथ नदी में तैरने गए थे। अचानक उनके दिमाग में ख्याल आया कि अगर मेरी जान अपने किसी सगे को बचाने में चली जाए तो मैं मुर्ख यदि मेरी जान अपने दो सगो को बचाने में चली जाए तो न फायदा न नुकसान। वहीं अगर मेरी जान अपने तीन सगे भाइयों को बचाने में चली जाए तो मेरे जीन्स की दृष्टि से वह निश्चित रूप से फायदे का सौदा होगा। उनका मानना था कि दो सगे भाइयों में ठीक आधे-आधे जीन्स एक समान होते हैं। इसके पीछे उनका तर्क यही रहा होगा कि ‘यदि एक को बचाते हुए मेरी जान चली गयी तो केवल आधे ही जीन्स बचे रहेंगे। यदि दो को बचाते हुए मेरी जान चली गयी तो जितने खोए उतने ही बचे रहेंगे, किंतु तीन की जान बचाते हुए जान चली गयी तो एक खोकर डेढ़ जीन्स बच जाएंगे। और यही सबसे बुद्धिमानी का काम होगा।
इस सिद्धांत को स्मबंधियों के चुनने का सिद्धांत कहते हैं, यही सिद्धांत प्राकृतिक चयन में एक नया आयाम जोड़ता है। इस सिद्घांत के अनुसार इस बात को स्पष्ट रूप से समझा जा सकता है कि जीवधारी में स्वार्थत्याग की भावना तो रहेगी मगर वो एक हद तक। वह अपने किसी सम्बंधी के लिए खतरा उठा सकता है, मगर सिर्फ तब ही जब उससे उसे पर्याप्त लाभ हो।इस सिद्धांत के अनुसार सारे कीटों में सिर्फ चीटियों और मधुमक्खियों को ही सामाजिक जीव कहा गया है। मगर ऐसा क्यों ? दरअसल यह एक समाज का निर्माण करते हैं, इस समाज में अलग-अलग जातियां भी होती हैं। जैसे मजदुर चींटी या मजदुर मधुमक्खियों का कार्य सिर्फ प्रजनन करने का होता है। प्रत्येक जाती के अलग-अलग काम निर्धारित होते हैं और ये सिर्फ वही काम करती है जिसके लिए यह बने होते हैं।
जिस तरह सैनिक मजदूर का काम नहीं करेगी और न मजदूर सैनिक का काम करेगी, और नही यह दोनों प्रजनन का कार्य करेगी। यह सब संभव हो पाया इनकी विशिष्ट प्रजनन प्रणाली के कारण। अगर देखा जाए तो प्रत्येक जीवधारी के शरीर की कोशिकाओं में दो अलग तरह के जीन्स पाए जाते हैं, एक माता से आया हुआ और दूसरा पिता के द्वारा आया हुआ। वहीं अगर इनके संदर्भ में बात की जाए तो मादा के अंडों और नर के शुक्राणुओं में एक ही जिन्स का सेट बच पाता है। संतान का निर्माण तब ही हो सकता है जब माता-पिता दोनों के आधे-आधे जीन्स एकत्रित हो पाए। यही वजह है कि मां-बेटी और सगे भाई-बहनों में आधे-आधे जीन्स समान होते हैं। मगर तुलनात्मक तरीके से चींटियां और मधुमक्खियां इस मायने में कुछ भिन्न होती है क्योंकि इनमें शुक्राणुओं द्वारा निषेचित, जीन्स के दो सेट वाले सामान्य अंडे से केवल मादाएं पैदा होती हैं। वहीं नर का जन्म अनिषेचित अंडों के कारण होता है।
वहीं देखा गया है कि मधुमक्खियों और चींटी जैसे कीट पतंगे एक समूह में रहकर अपना जीवन व्यापन करते हैं, और इसी के लिए वे एक दुसरे निरंतर संवाद करते रहते हैं। हाल ही में वैज्ञानिकों ने शोध करके मौजूदा सूचना प्रक्रिया को और अधिक सुचारू बनाने के लिए उनके नेटवर्क को समझने का प्रयास किया। इस शोध में पाया गया कि कुछ किट-पतंगों का समूह आपस में जिस नेटवर्क के तहत संवाद करता है वो कृत्रिम तकनीकी सूचना स्थानांतरण नेटवर्क की तरह है। आईआईएससी, आईआईएसईआर-कोलकाता और बिट्स पिलानी के वैज्ञानिकों की एक टीम ने अभी हाल ही में इन जीवों के बीच इस तरह की संरचना और कृत्रिम प्रक्रिया के बीच मिलान करने पर मौजूदा सूचना प्रक्रिया तंत्र को बेहतर बनाने में नेटवर्क संवाद की पड़ताल करने की कोशिश की जाती है। गुब्बी लैब ने एक विज्ञप्ति दी थी जिसके अनुसार, जीवों के बीच की संरचना विभिन्न स्तरों -सेलुलर और अनुवांशिक पर बेहतरीन समन्वित प्रक्रिया इस पर काफी हद तक निर्भर करती है।समूह में रहने वाले कीट पतंगे विभिन्न स्तरों पर समन्वय करते हैं। सूचना का असरदार स्थानांतरण संवाद तंत्र के जरिए होता है और यह तब भी बेहतर काम करता है जब समय या उर्जा संबंधी मजबूरी होती है। मानव के अलावा मधुमक्खी जैसे कीट में काफी जटिल सामाजिक संरचना होती है।
Leave a Reply