Bacterial transformation experiment को frederick griffith ने 1928 ईस्वी में सिद्ध किए थे । अपने experiment के लिए उन्होंने streptococcus pneumoniae नामक जीवाणु को चुना और जब उस जीवाणु पर अध्ययन( search) किए तो उन्होंने दो प्रकार का जीवाणु पाया, दोनो में अलग-अलग strain पाया। उन्होंने एक बैक्टीरिया का पूरा शरीर की कोशिका के भक्ति के ऊपर शैलेशमा युक्त आवरण से घिरा हुआ था जो चिकना था Griffith ने उसे S- type का बैक्टीरिया नाम दिया। और दूसरे बैक्टीरिया का कोशिका भित्ति किसी शैलेशमा युक्त आवरण से नहीं घिरा था अत: वह खुरदरा था जिसे वैज्ञानिक ने R- type का बैक्टीरिया माना।
अब Frederick Griffith ने S- type के जीवाणु को चूहे के अंदर inject किया जिससे चूहे को निमोनिया हो गया। क्योंकि यह जीवाणु निमोनिया रोग भी पैदा करते हैं और दूसरे चूहा में R- type के जीवाणु inject किया जिससे चूहे को निमोनिया नहीं हुआ। अत: यह नहीं मारा। जबकि S- type वाले बैक्टीरिया से चूहा मर गया था। जिससे चूहा मरा उसे virulent तथा जिससे नहीं मरा उसे nanvirulent जीवाणु कहा गया।
अब S- type के जीवाणु को उच्च ताप देकर मार दिया गया और मृत अवस्था में ही R- type के जीवाणु के साथ मिश्रण किया गया और उस मिश्रण को एक तीसरे चूहे में inject किया गया जिससे चूहा मर गया। ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि R- type के जीवाणु में मरे हुए S- type के जीवाणु का DNA transfer कर गया था। अतः वैज्ञानिक ने इस प्रयोग को bacterial transfer नाम दिया साथ ही साथ इस प्रयोग से यह भी स्पष्ट हो गया कि सचमुच DNA एक अनुवांशिक पदार्थ ( DNA is a actually genetic material) है।