विद्युत ऊर्जा यानि कि विद्युत के महत्व का अंदाजा तो आप इसी बात से लगा सकते हैं कि एक बटन दबाते ही लाइट, पंखे व सभी विद्युत चलित साधन हमें दैनिक जीवन की सुख-सुविधा प्रदान करवाते हैं और जब कभी कुछ देर के लिए विद्युत आपूर्ति बन्द हो जाती है तो विद्युत से चलने वाले सभी साधन अनुपयोगी हो जाते हैं, प्रकाश उपलब्ध नही होता व अन्य कई असुविधाएँ महसूस होती है।
आजकल के समय में घर हो या गली, अंदर हो या बाहर, व्यावसायिक उपक्रम या दुकान, प्रत्येक जगह विद्युत के बिना कार्य करने की कल्पना मात्र भी कठिन दिखाई पड़ती है। छोटे से लेकर बड़ा कार्य करने में भी विद्युत ऊर्जा सहायक है। इस तकनीकी युग में मनुष्य पूरी तरह से विद्युत के अधीन होकर ही प्रगति कर सकता है।
विद्युत ऊर्जा को जानने से पहले हमे ऊर्जा के विषय में ज्ञान होना आवश्यक है।
किसी कार्य को करने के लिए शक्ति अर्थात् क्षमता का प्रयोग किया जाता है, इसी क्षमता को ऊर्जा कहते हैं।
ऊर्जा कोई पदार्थ नही है, अपितु पदार्थों में पाया जाने वाला गुण है। इस गुण का स्थानान्तरण व रूपान्तरण किया जा सकता है। इसे केवल अदृश्य शक्ति के रूप में माना जाता है।
जो ऊर्जा किसी विद्युत आवेश से युक्त होती है, वह विद्युत ऊर्जा कहलाती है। यह स्थितिज ऊर्जा होती है, जो कूलाम्ब बल के कारण आवेशित कणों के मध्य जुड़ जाती है। विद्युत ऊर्जा की ईकाई किलोवाट घण्टा होती है।
विद्युत उत्पादन-
सामान्यतः विद्युत उत्पादन के लिए विद्युत जरनेटर (जनित्रों) की सहायता ली जाती है। जरनेटर के माध्यम से यांत्रिक ऊर्जा को विद्युत ऊर्जा में रूपान्तरित किया जाता है। इनमे चुम्बकीय क्षेत्र का महत्वपूर्ण स्थान है। ऐसी यांत्रिक ऊर्जा की प्राप्ति के कई स्त्रोत हो सकते हैं, जैसे ऊँचाई से गिरते हुए जल से, गैस, भाप या अन्य ईंधन से व परमाणुशक्ति से।
विद्युत जरनेटर फैराडे के “विद्युत चुम्बकीय प्रेरण” के सिद्धान्त पर कार्य करता है।
जरनेटर विद्युत आवेशों के प्रवाह का कार्य करता है। ध्यान देने योग्य तथ्य है कि विद्युत इंजन स्वयं चलायमान नही होते हैं। बाहरी शक्ति स्त्रोत से इनको चलाया जाता है, जिसके लिए भाप इंजन, गैस टरबाईन, पवन टरबाईन आदि में से किसी भी स्त्रोत का उपयोग किया जा सकता है।
विद्युत जनित्र दो प्रकार के होते हैं- दिष्ट धारा जनित्र व प्रत्यावर्ती धारा जनित्र। इन दोनों का कार्य करने का सिद्धान्त तो एक ही है, परन्तु इनकी संरचना में भेद पाया जाता है।
जहाँ विद्युत (बिजली) का उत्पादन किया जाता है, उस स्थान को बिजलीघर कहते हैं। विद्युत उत्पादन के भिन्न-भिन्न तरीके होते हैं, फलस्वरूप बिजलीघर भी अलग-अलग प्रकार के होते हैं। इनका विवरण इस प्रकार है-
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पनबिजलीघर- इनमे मुख्यतः नदी या नहरों से बाँध की सहायता से उपयुक्त मात्रा में पानी एकत्रित करते है। उस पानी को विद्युत जरनेटर वाले टरबाईन पर ऊँचाई से गिराया जाता है। ये टरबाईन इन जनरेटरों के प्रधान चालक होते हैं। इससे विद्युत उत्पादन किया जाता है।
भाप चलित बिजलीघर- इनमे भाप से चलने वाले टरबाईन का प्रयोग किया जाता है। इन टरबाईन को तीव्रता से चलाने के लिए अत्यधिक भाप पैदा करने हेतु इनमे बड़े-बड़े बॉयलर (वाष्पित्र) होते हैं। इस प्रकार भाप वाले टरबाईन से विद्युत उत्पादन होता है।
परमाण्वीय बिजलीघर- आजकल कुछ देशों में परमाणु शक्ति की सहायता से भी विद्युत उत्पादन किया जा रहा है। इसमें किसी प्रकार के ईंधन का इस्तेमाल नही किया जाता और न ही जल का उपयोग होता है। फलस्वरूप ईंधन व जल की खपत ने भी कमी आती है, परन्तु इनकी लागत अपेक्षाकृत अधिक होती है।
इसके अतिरिक्त गैस टरबाईन के द्वारा भी विद्युत उत्पादन किया जाता है। गैस से चलने वाले टरबाईन बड़ी आकृति के होते हैं, परन्तु इनके संचालन के लिए अत्यधिक ताप और दबाव की आवश्यकता पड़ती है। वर्तमान समय में गैस टरबाईन का अधिक इस्तेमाल नही किया जा रहा।
सौर ऊर्जा व पवन ऊर्जा का प्रयोग भी विद्युत उत्पादन में किया जाता है।
विद्युत प्रेषण-
यह तो सर्वविदित ही है कि विद्युत का उत्पादन जिस क्षेत्र में होता है, वहाँ विद्युत का उपयोग नही होता। उपयोग करने वाले क्षेत्र तक विद्युत का स्थानांतरण किया जाता है, जिसे विद्युत प्रेषण भी कहते हैं। तारों (केबल) की सहायता से विद्युत स्थानांतरित की जाती है। ये तारें भूमिगत यानि कि जमीन के अंदर होती है और कुछ तारें खम्बों के सहायता से जमीन से 20 फ़ीट या अधिक ऊँचाई पर भी होती हैं। आपने सामान्यतः सड़कों पर लगे विद्युत के खम्बे देखें ही होंगे, जिनकी सहायता से हमें घर बैठे विद्युत की सुविधा प्राप्त होती है|
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