सिन्धु घाटी सभ्यता का नाम तो आप सभी ने सुना ही होगा, इसी सभ्यता से जुड़ा एक नगर है-मोहनजोदडों। आज से लगभग 2600 ईसा पूर्व इस नगर का विकास हुआ था। इसके भिन्न-भिन्न उच्चारण हैं- मुअन जोदडों, मोहनजोदरों, मोहेंजो दारों। सिन्धी भाषा के इस शब्द का मतलब है- ‘मुर्दों का टीला’। यह दुनिया के प्राचीनतम नगरों में से एक माना जाता है। यह पाकिस्तान में सिन्धु नदी के पास पश्चिम की तरफ़ बसा एक नगर है। यह सिन्ध के लरकाना ज़िले के क्षेत्र में आता है। आज से लगभग एक शताब्दी पूर्व राखालदास बनर्जी द्वारा यह नगर खोजा गया था।
संरचना व निर्माण
मोहनजोदडों को एक व्यवस्थित शहर की संज्ञा दी जाती है। पक्की ईंटों व मज़बूत दीवारों के बने घर यहाँ आज भी स्थित हैं। स्नानगृह व कुएँ तथा जल के निकास के लिये नालियों की भी व्यवस्था थी। आवागमन के लिए बड़ी-चौड़ी सड़कें भी बनाई गयी थीं, जो कि आज भी वैसे ही मौजूद हैं।
यहाँ एक ओर स्थान प्रसिद्ध है, जिसे कुछ लोग विशाल स्नानगृह कहते हैं और कुछ वृहत जल कुंड के नाम से बताते हैं। यह 8 फुट गहराई, 24 फुट चौड़ाई व 30 फुट लम्बाई वाला स्तंभों से घिरा हुआ है। यह अत्यन्त पक्की ईंटों से बनाया गया है और इसके दो तरफ़ सीढ़ियाँ बनी हैं। इससे सटी पानी निकलने के लिए बनाई गयी नालियाँ भी कच्ची मिट्टी की नही हैं और उन्हें ढका भी गया है।
इस नगर में भिन्न-भिन्न स्थानों व कुंड का निर्माण काफ़ी समझदारी व मेहनत के साथ किया गया था। इससे हम यह अनुमान लगा सकते हैं कि उस समय केवल स्त्रोतों की कमी थी, परन्तु लोग काफ़ी बुद्धिमान हुआ करते थे और कार्य भी पूरी क्षमता के साथ करते थे। निर्माण विधि देखकर यह सिद्ध होता है कि गणित और विज्ञान से भी अवगत थे।
ख़ुदाई में मिले तथ्य
आज तक मोहनजोदडों के लगभग एक तिहाई क्षेत्र को खोदा जा चुका है। यह तो सर्व विदित ही है कि यहाँ सिंधु घाटी सभ्यता के अवशेष मिले थे। इसके अतिरिक्त ख़ुदाई में कुछ ऐसी चीज़ें मिली हैं, जिनसे यह प्रतीत होता है कि उस समय नगर के लोग कृषि कार्य भी करते थे और पशु भी पालते थे। देवी-देवताओं की मूर्तियाँ भी प्राप्त हुई और कुछ चित्रात्मक छापे भी मिली, जो शायद किसी भाषा के रूप मे प्रयोग की जाती होंगी। यहाँ एक स्थान ऐसा भी खोजा गया, जहाँ रंग का इस्तेमाल होता था। यह कपड़ों की रंगाई या किन्ही वस्तुओं की रंगाई का हो सकता है।
संगीत व गाने-बजाने के कुछ सामान मिले, जो इस ओर इंगित करते हैं कि इस सभ्यता के लोग नाचने-गाने से अपना मनोरंजन करते होंगे। यहाँ कुछ ऐसे चीजें भी पायी गई, जिसमें चारकोल का इस्तेमाल किया गया था। कांसे के बर्तन व मूर्तियाँ, मुहर, सिक्के व अन्य मुद्राएँ, शीशा, खेलने के सामान, मिट्टी के सामान, औज़ार, गहने, गेहूँ पीसने की चक्की आदि अनेक प्रकार की वस्तुएँ मिली, जो कि आज के समय में लोगों के देखने के लिये अजायबघर में संग्रहित कर दी गयी।
विस्मित कर देने वाली बात यह है कि इतने सारे अवशेषों में किसी भी हथियार का कोई सबूत नही मिला। मानो उस समय में नगर के लोगों द्वारा या राजा के द्वारा हथियारों का प्रयोग ही नही किया जाता था।
किसी प्रकार की हिंसा होती ही नही होगी, न दण्ड देने के लिये कोई हथियार थे। यह काफ़ी सकारात्मक पहलू सिद्ध होता है, जो कि मोहनजोदडों की शान्त व परोपकारी शासनकाल और अहिंसा व आपसी स्नेह व भाईचारे वाली संस्कृति की ओर इशारा करता है। आज भी विशेषज्ञ इस विषय पर कार्य कर रहे हैं।
पूर्णतः इसे भी सत्य नही माना गया क्योंकि अभी तक इस नगर की ख़ुदाई का कार्य अधूरा है। यह भी सम्भव है कि आगे कोई ऐसे सबूत मिल जाये, जो आज की हमारी इस विचारधारा में परिवर्तन कर दे।
आज की स्थिति
मोहनजोदडों आज बसा हुआ नगर नही है, परन्तु इसकी गालियाँ व सड़कें आज भी विचरण के लिये मौजूद हैं और घर व इमारतों की दीवारें पुरानी होकर खंडहर बन गयीं है, लेकिन यह वहाँ की सभ्यता व विकास को आज भी ज़ाहिर करती हैं। दोनों ओर घर व बीच में सड़क की चौड़ाई इतनी है कि आसानी से दो बैलगाड़ियाँ गुजर सकती हैं। यहाँ एक ओर विशेष बात यह भी देखी गयी कि घरों के दरवाज़े मुख्य सड़कों पर न होकर भीतर की गलियों की तरफ खुलते हैं। यह नगर टेढ़ा-मेढ़ा व संकरी गलियों वाला न होकर पूरे प्रबंधित तरीक़े से निर्मित किया गया था।
सभ्यता का विनाश
मोहनजोदडों की सभ्यता का विनाश होने के सही कारणों का पता आजतक नही चल पाया है। इस सम्बन्ध में विभिन्न विद्वानों के अलग-अलग मत हैं। खोजकर्ताओं के अपने ज्ञान के आधार पर इसके अंत के अनेक कारण बताए जा चुके हैं।
कुछ विद्वान कहते हैं कि पृथ्वी की भीतर संरचना में हुए बदलावों के कारण वहाँ की जलवायु परिवर्तित हुई। तब अकाल पड़ने से यह क्षेत्र सूखा ग्रस्त हो गया और इसी वजह से धीरे-धीरे लोग मरने लगे और सभ्यता ख़त्म हो गयी।
वहीं दूसरी ओर कुछ कहते हैं कि जलवायु और भौगोलिक परिवर्तन होने से पृथ्वी में हलचल हुई और भीषण भूकम्प आने के कारण मोहनजोदडों का विनाश हुआ।
इसके अतिरिक्त कुछ शोधकर्ताओं ने यह बात भी कही कि इस नगर की खुदाई के समय कुछ मानव कंकाल पाए गये और जाँच के परिणाम स्वरूप उन कंकालों पर रेडियोधर्मी किरणों के परिणाम पाये गये। परन्तु उस समय परमाणु विस्फोट होने के आसार उचित प्रतीत नही होते। लेकिन यह भी कहा गया कि हो सकता है कि महाभारत के युग में युद्ध के दौरान ब्रह्मास्त्र का प्रयोग किया गया होगा और ब्रह्मास्त्र को परमाणु बम के समान ही माना जाता था, जिसमें किसी भी सभ्यता का विनाश करने की शक्ति होती थी।
महाभारत काल के लगभग 1000-1100 वर्षों के पश्चात् ही मोहनजोदडों का विकास हुआ और वहाँ ब्रह्मास्त्र का असर तब भी मौजूद रहा होगा। परन्तु अभी तक इसकी सत्यता प्रमाणित नही हुई है।
इतने अध्ययन के पश्चात् यही निष्कर्ष निकलता है कि आजतक मोहनजोदडों के विनाश की असलियत सामने नही आयी है। अभी तक इस नगर की ख़ुदाई पूरी नही हुई है और इसके विकास व विनाश सम्बन्धी विषयों पर आज़ भी खोज कार्य व चर्चा जारी है|
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