जनन एक प्राकृतिक क्रिया है, जो कि सृष्टि को चलाने के लिए आवश्यक भी है। धरती पर सजीवों का अस्तित्व जनन के द्वारा ही बनाकर रखा जा सकता है। इसी प्रकार मनुष्यों में जनन के द्वारा ही नया मनुष्य पैदा किया जाता है, इसी से मनुष्य जाति का विकास होता है। धरती पर केवल मानव व डॉल्फिन ही ऐसे जीव हैं जो शारीरिक सन्तुष्टि, आनन्द व चरम सुख के लिए शारीरिक सम्बन्ध बनाते हैं व लैंगिक जनन करते हैं।
मनुष्य में प्रजनन के लिए स्त्री एवम् पुरूष के मध्य सम्बन्धों का बनना आवश्यक है। पुरूष द्वारा यौन क्रिया के दौरान जब वीर्य का स्राव स्त्री की योनि में कर दिया जाता है, इसे वीर्यसेचन कहते है, इस स्थिति में स्त्री के गर्भ ग्रहण करने के आसार होते हैं।
पुरूष में प्राथमिक जनन अँगों के रूप में दो वृषण पाये जाते हैं, जो अण्डाकार आकृति के साथ गुलाबी रंगत लिए हुए होते हैं। ये दोनो वृषण उदरगुहा के बाहर एक थैली समान आवरण में स्थित होते हैं, जिसे वृषणकोष कहते हैं। वृषण में ही शुक्राणुओं का जन्म व विकास होता रहता है तथा टेस्टोस्टेरॉन हॉर्मोन बनता है।
शुक्राणु पुरुषों में पाई जाने वाली एक जनन कोशिका है तथा यह मानव शरीर की सबसे छोटी कोशिका है। टेस्टोस्टेरॉन हॉर्मोन के कारण ही लड़कों में यौवनावस्था के दौरान कई प्रकार के लक्षण पैदा होते हैं तथा यौवनारम्भ होता है।
शुक्राशय, अधिवृषण, शुक्रवाहिनी, शिश्न भी पुरुषों के द्वितीयक सहायक जनन अंग हैं
स्त्री के शरीर में प्राथमिक जनन अंगो के रूप में एक जोड़ी अण्डाशय पाये जाते हैं, जिनमें अंडों का निर्माण व विकास होता है तथा एस्ट्रोजन व प्रोजेस्टेरोन हॉर्मोन बनते हैं। इन दोनों हॉर्मोन्स की सहायता से ही स्त्रियों में लैंगिक परिवर्तन आते हैं।
उदरगुहा में गर्भाश्य के दोनोँ तरफ श्रोणि भाग में ये अण्डाशय स्थित होते हैं। अण्डाशय में अनगिनत विशिष्ट संरचनाएँ पाई जाती है, जिन्हें अंडाशयी पुटिकाएँ कहा जाता है। इन पुटिकाओं से ही अण्डाणु बनते हैं तथा जब ये अण्डाणु परिपक्व हो जाते हैं तब ये अण्डाशय से निकालकर अंडवाहिनी में पहुंच जाते हैं तथा फिर गर्भाशय तक पहुँचते हैं।
स्त्री शरीर में अंडवाहिनी, गर्भाशय व योनि द्वितीयक जनन अंगो के रूप में पाई जाती है। ये सभी कुछ नलिकाओं के माध्यम से एक-दूसरे से मिली हुई होती हैं तथा हर एक नलिका की लंबाई 10-12 सेंटीमीटर होती है। ये नलिकाएँ अण्डाशय की बाहरी तरफ से घूमते हुए गर्भाशय तक पहुँचती है।
लैंगिक जनन के दौरान पुरुषों में जो युग्मक बनते हैं, वे नर युग्मक होते हैं व स्त्री में जो युग्मक बनते हैं, वे मादा युग्मक होते हैं। युग्मक निर्माण निषेचन से पूर्व होता है। नर युग्मकों का अंतरण मादा युग्मक में होता है। नर युग्मकों के मादा युग्मकों से मेल होने से मादा के अण्डाणु निषेचित हो जाने से युग्मनज का निर्माण होता है, जिससे भ्रूण बनता है तथा यह भ्रूण विकास करते हुए शिशु का रूप ले लेता है। गर्भ ग्रहण करने के 9 महीने बाद शिशु पूर्णतः विकसित हो जाता है तथा स्त्री प्रसव काल में होती है।
नर व मादा दोनोँ में 46-46 गुणसूत्र होते है। जब जनन कोशिका में युग्मक निर्माण होता है तब कोशिकाओं में अर्द्धसूत्री विभाजन होता है। इस विभाजन में गुणसूत्र आधे रह जाते हैं अर्थात् 23-23 हो जाते हैं (23 नर के व 23 पुरूष के)। अर्द्धसूत्री विभाजन केवल जनन कोशिका में ही होता है। शरीर की अन्य सभी कोशिकाओं में समसूत्री विभाजन ही होता है।
मनुष्य के शरीर में कोशिका का विभाजन दो तरह से होता है-
समसूत्री विभाजन– कोशिका के केन्द्रक का विभाजन व कोशिका के द्रव्य के विभाजन को समसूत्री विभाजन कहलाता है।
अर्द्धसूत्री विभाजन– कोशिका में गुणसूत्रों की संख्या घटकर आधी रह जाती है। यह केवल जनन कोशिका में होता है।
इस प्रकार मानव जनन की प्रक्रिया सम्पन्न होती है व निषेचन होने के बाद संतान का जन्म होता है तथा नया मानव जीवन अस्तित्व में आता है।
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