भारत छोड़ो आन्दोलन – Quit India movement in Hindi

Closeup of Ruffled India Flag, India Flag Blowing in Wind

भारत की आज़ादी की लड़ाई में महात्मा गाँधी जी के योगदान को दुनिया भूल नही सकती। गाँधी जी द्वारा भारत को अंग्रेजों से मुक्त कराने के अनेक प्रयास किये गए व कई आन्दोलन छेड़े गए। उन्हीं में से एक मुख्य तीसरा आन्दोलन भारत छोड़ो आन्दोलन था।

4 जुलाई 1942 को गाँधी जी द्वारा मुम्बई अधिवेशन के दौरान इस आन्दोलन के प्रस्ताव को भारत की कांग्रेस समिति के समक्ष प्रस्तुत किया गया था। कुछ मतभेदों व विचार-विमर्श के पश्चात् द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान ही “भारत छोड़ो आन्दोलन” का प्रस्ताव 8 अगस्त 1942 को पारित किया गया था।

भारत छोड़ो आन्दोलन अत्यन्त सहयोगी माना जाता है। 

इसकी शुरुआत अगस्त माह में हुई तो इस आन्दोलन का दूसरा नाम “अगस्त क्रान्ति” भी रखा गया था।

अंग्रेजों की खिलाफत करने का “भारत छोड़ो” का नारा “यूसुफ मेहर अली” के द्वारा  दिया गया था।

गाँधी जी द्वारा भारतीय लोगों के लिए दिए गए नारे “करो या मरो” के साथ इस आन्दोलन की शुरुआत की गयी। यह इस ओर इंगित करता है कि स्वतन्त्रता की लड़ाई लड़ते हुए आज़ादी प्राप्त करने के प्रयास करते रहें या बिना लड़ाई लड़े अपनी जान को व्यर्थ न गंवा दें या अपनी जान दांव पर लगाते हुए देश की आजादी की लड़ाई लड़ते रहें।

भारत में अनेक लोगों ने इस आन्दोलन में अपना सहयोग प्रदान किया था। युवाओं द्वारा भी पूरे जोश के साथ आन्दोलन को बढ़ावा मिला।

8 अगस्त 1942 को प्रस्ताव स्वीकार होते ही अगले दिन 9 अगस्त 1942 को अंग्रेजी सरकार ने रोष प्रकट करने के लिए अनेक लोगों को जेल में बन्द कर दिया और कांग्रेस समिति पर रोक लगा दी। बहुत सी हिंसक व अहिंसक गतिविधियों के परिणाम सामने आने लगे। कई जगह हड़तालें, लाठीचार्ज, तोड़फोड़ व जन-प्रदर्शन किये गए। विभिन्न तरह की क्रांतिकारी गतिविधियाँ जोर-शोर से की जाने लगी।

समाचार पत्रों में आन्दोलन के सम्बन्ध में प्रतिदिन की नयी खबरें आने लगी, जिनमें कुछ खबरें अंग्रेजों की कमजोरी प्रदर्शित करने वाली थीं, जिस वजह से सरकार ने उन समाचार पत्रों के प्रकाशन को भी बन्द करवा दिया था। आन्दोलन के प्रभावशाली होने के कारण अंग्रेजों को अपनी नींव हिलती हुई सी दिखी। इस बात का अंदाजा इस तथ्य से लगाया जा सकता है कि 1942 में उस वर्ष के अंत तक अंग्रेजों ने लगभग 60000 लोग जेल में बन्द करवा दिए थे।

समूचे देश में इस आन्दोलन की लहर चल पड़ी। मुख्य नेताओं के जेल चले जाने के बाद आन्दोलन के लिए प्रेरित व मार्गदर्शन करने वाले नेताओं के मौजूदगी न होने पर भी आम जनता ने इस आन्दोलन से अपने कदम पीछे नही हटाये और स्वयं मार्गदर्शक बनकर निडरता से आज़ादी के संघर्ष के मार्ग पर चलते रहे। इसमें बहुत से लोगों ने अपनी जान गंवा दी थी। स्त्रियों व युवाओं ने बढ़ चढ़कर इसमें हिस्सा लिया।

क्या सफल हो पाया था भारत छोड़ो आन्दोलन?

हालांकि यह आन्दोलन पूर्ण रूप से सफल नही हो पाया था, परन्तु इसने अंग्रेजी सरकार को हिला जरूर दिया था। इस आन्दोलन के कारण ही भारत की आम जनता में एक जुटता पैदा हुई। स्वतन्त्रता के लिए भारतीय आपस में मिलकर एक साथ संघर्षशील बनते चले गए।

एक वर्ष से कुछ समय अधिक तक यह आन्दोलन चला था। सन् 1943 के आखिर में गाँधी जी ने इस आन्दोलन पर नियंत्रण कर बन्द कर दिया था, क्योंकि अंग्रेजी सरकार ने यह कहा था कि सत्ता की कुछ बागडोर भारतीय लोगों को संभालने को दे दी जायेगी।

इसके बाद जेल में कैद किये गए कई नेताओं को मुक्त भी कर दिया गया था।

भारत छोड़ो आन्दोलन देश का सबसे बड़ा व प्रभावशाली आन्दोलन माना जाता है। भारत की जनता की एक जुटता के बाद इस आन्दोलन से उत्पन्न हुए परिणामों ने अंग्रेजों को सोचने पर मजबूर कर दिया था|