बाढ़, सुनामी, चक्रवात, भूकम्प, हिमस्खलन, भूस्खलन, तूफ़ान, सुखा, ज्वालामुखी विस्फोट, बादल फटना आदि प्राकृतिक आपदाओं के उदाहरण हैं। क्षेत्रीय भिन्नता के कारण आपदा में भी भिन्नता पायी जाती है अर्थात् धरती के भिन्न-भिन्न देशों में भिन्न-भिन्न प्रकार की प्राकृतिक आपदायें आती हैं।
इसका कारण यही है कि मनुष्य द्वारा अनावश्यक रूप से प्रकृति के साथ छेड़छाड़ की जाती है तथा प्राकृतिक संसाधनों का वृहत् रूप से उपयोग किया जाता है। इससे प्राकृतिक असन्तुलन की स्थिति उत्पन्न होती है। प्रकृति के सन्तुलन को बिगाड़ने के नकारात्मक परिणाम में मनुष्य को गम्भीर प्राकृतिक आपदाओं का सामना करना पड़ता है। कई बार तो ये आपदायें जानलेवा भी सिद्ध होती हैं।
बढ़ता हुआ शहरीकरण व तकनीकी विकास के लिए पेड़ों की कटाई, सुरंगों का निर्माण करना, पहाड़ों को काटकर सड़क व पुल का निर्माण करना, जंगलों का दोहन आदि करके प्राकृतिक स्त्रोतों का धीरे-धीरे विनाश होता जा रहा है, प्रकृति का सन्तुलन बिगड़ता जा रहा है और यही गतिविधियाँ प्राकृतिक आपदाओं को न्यौता देती हैं। मानव का स्वार्थ ही कहीं न कहीं प्राकृतिक आपदा का मुख्य आधार है और अपने स्वार्थ से स्वयं को ही गम्भीर हानिकारक स्थिति में डाल रहा है। प्राकृतिक आपदाओं से न केवल माल-धन की हानि होती है, अपितु जन हानि भी होती है।
मनुष्य द्वारा प्रकृति के नियमों की अनदेखी कर के प्रकृति से अधिक ताकतवर बनने की युक्तियाँ निकाली जाती हैं, परन्तु यह असम्भव प्रयास है और मनुष्य अपने इस प्रयास में कभी सफल नही हो पाता, क्योंकि जब प्रकृति अपना प्रकोप दिखाती है तो मानवकृत सभी युक्तियाँ महत्वहीन हो जाती है तथा सारे तकनीकी विकास असफल हो जाते हैं और अन्ततः मनुष्य प्रकृति के महाप्रकोप को झेलने के लिए मजबूर हो जाता है।
हमारे कानून में मनुष्य द्वारा अन्य मनुष्य के विरुद्ध अपराध कारित किये जाने पर दण्ड के प्रावधान दिए गए हैं, परन्तु उसी मनुष्य द्वारा जब सामूहिक रूप से प्रकृति के विरुद्ध कोई कार्य किया जाता है तो इस सम्बन्ध में कोई दण्ड का प्रावधान नही है, अतः प्रकृति द्वारा स्वयं ही मनुष्य को प्राकृतिक आपदा के रूप में दण्डित किया जाता है।
दुनिया के भिन्न-भिन्न इलाकों में किसी न किसी प्राकृतिक आपदा के कारण प्रतिवर्ष आर्थिक, भौगोलिक व जन हानि होती है, घर-शहर नष्ट हो जाते हैं, सभी व्यवस्थायें ठप हो जाती है और गम्भीर नुकसान का सामना करना पड़ता है।
मनुष्य को समय रहते यह मान लेना चाहिए कि वह प्रकृति से ताकतवर नही बन सकता तथा प्रकृति से नियमों के विरुद्ध जाकर वह अपने दुःख का कारण स्वयं उत्पन्न करता है|
Aacha hai
Kya huwa hai jee boliye na iska matlb kya hai nahi jante hai batiye kya