पॉपकॉर्न का नाम सुनते ही सबसे पहले सिनेमा हॉल की यादें ताजा हो जाती है। शायद पॉपकॉर्न सभी लोगों द्वारा पसन्द किये जाते हैं, क्योंकि इन्हें खाते हुए समय व्यतीत होने का पता ही नही लगता। मनोरंजन के दौरान जैसे फ़िल्म देखना, किसी मेले में घूमते हुए या टहलते हुए पॉपकॉर्न खाने का प्रचलन भी है और ये शायद कुछ लोगों की आदत में भी शुमार है।
जब पॉपकॉर्न की बात आती है तो दिमाग में एक दृश्य बन जाता है कि कैसे मक्के के दाने गर्म होकर उछलते हैं और पॉपकॉर्न का रूप ले लेते हैं। दाने उछलते हुए पट पट की आवाज़ करते हैं तथा कुरकुरे पॉपकॉर्न के मजे लिए जाते हैं।
चलिए आज हम इस लेख में पॉपकॉर्न के पॉप होने के बारे में ही आपको जानकारी देंगे। आखिर मक्का का छोटा सा दाना अपने से दोगुना या तिगुना बड़ा पॉपकॉर्न का आकार कैसे और क्यों ले लेता है, इसी तथ्य से हम आपको आज अवगत करवाना चाहेंगे
सबसे पहले पॉपकॉर्न की शुरूआती अवस्था अर्थात् मक्के के दाने की संरचना को समझना आवश्यक है। मक्का के दाने यानि पॉपकॉर्न पॉप होने से पहले बहुत सख्त होते हैं। ये बाहर से सुनहरी पीले रंग के होते है। इसके भीतर मध्य में मक्का का बीज पाया जाता है। इसके ऊपर के भाग में एक कठोर आवरण पाया जाता है, जिसे स्टार्च कहा जाता है। मक्के के दाने भीतर से नमीयुक्त होते हैं अर्थात् इनमें हल्का गीलापन होता है। विज्ञान के सामान्य नियम के अनुसार जब भी पानी से युक्त किसी वस्तु को गर्म किया जाता है तो उसमे भाप बनना सामान्य बात है। ऐसा ही नियम मक्के के दानों में भी लागू होता है।
चूँकि मक्का के दाने अत्यधिक कठोरता के गुण से युक्त होते हैं, जिसके कारण इन्हें पॉपकॉर्न का रूप लेने के लिए अत्यधिक तापमान की भी आवश्यकता होती है।
जब मक्के के दानों को गर्म किया जाता है तो 100 डिग्री सेल्सियस तक तापमान मिलने पर इन दानों की नमी से इनमे भाप बननी आरम्भ होने लगती है। जब तापमान ओर अधिक बढ़ जाता है और लगभग 180 डिग्री सेल्सियस के करीब पहुँच जाता है तो यह भाप बढ़ते हुए फैलती जाती है तथा भीतर दबाव पैदा करने लगती है। हालांकि मक्का का बाहरी आवरण अत्यन्त सख्त होता है, पर फिर भी भाप के अत्यधिक दबाव के कारण जब दाने की बाहरी परत उस दबाव को झेल नहीं पाती तो यह आवरण फट जाता है। भाप के दबाव के कारण झटके से इसमें उछाल पैदा होता है, इस दौरान पट पट की आवाज आती है, इसके बाद यह पॉपकॉर्न के आकार में बन जाता है।
इसे ही पॉपकॉर्न पॉप होना कहा जाता है।
ऊपर विस्तृत वर्णन दिया जा चुका है कि मक्के के दाने कैसे पॉपकॉर्न का रूप ले लेते है। अब आप ये तो जान ही गए होंगे की पॉपकॉर्न पॉप क्यों होता है, परन्तु इतना जानने के पश्चात् इससे जुड़े वैज्ञानिक इतिहास के बारे में भी ज्ञान होना आवश्यक है। अब हम बात करेंगे उन वैज्ञानिकों कि जिन्होंने पॉपकॉर्न के पॉप होने के तथ्य प्रस्तुत किये।
फ़्रांस के दो विख्यात वैज्ञानिक इमैनुएल विरोट व एलेक्जेंडर पोनोमारैको को पॉपकॉर्न के पॉप होने का कारण जानने की तीव्र इच्छा जागृत हुई। वे अत्यंत जिज्ञासु हो गए कि पॉपकॉर्न पॉप कैसे होते हैं तथा पॉप होने के दौरान इनमे से पट पट की आवाज़ आने के क्या कारण है।
अपनी इस प्रबल इच्छा को पूरा करने के लिए उन्होंने इस सम्बन्ध में प्रयोग किये। अपने प्रयोग में उन्होंने मक्के के दानों से पॉपकॉर्न बनने की सारी प्रक्रिया को कैमरा द्वारा रिकॉर्ड करने की सोची। उन्होंने एक साथ बहुत सारे कैमरा लगाये तथा प्रत्येक कैमरा प्रति सेकण्ड में बहुत सारी तस्वीरें लेता।
इसी के साथ कम्प्यूटर द्वारा तापमान सम्बन्धी आँकड़े भी लिए गए। इस प्रयोग से प्राप्त तस्वीरों व कम्प्यूटर के परिणामों से यह तथ्य सामने आया कि मक्के का दाना जब 100 डिग्री सेल्सियस के तापमान को प्राप्त करता है तो उसके भीतर भाप निर्माण की प्रक्रिया शुरू होती है और जब तापमान 180 डिग्री सेल्सियस तक पहुँच जाता है तो अत्यधिक भाप बनने से दानों को परत पर भाप का दबाव बनने लगता है और यह परत दबाब न झेल पाने के कारण अचानक से पट की आवाज़ करते हुए फट जाती है तथा भाप की निकासी हो जाती है, मानो जैसा कि छोटा सा विस्फोट हुआ हो। इस प्रकार पॉपकॉर्न पॉप होते है|
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