हमारे आसपास कई तरह के लोग होते है, जो आकृति, आकर और रंग में एक दुसरे से भिन्न होते है। जहां किसी का रंग काला होता है, तो किसी का गोरा, कोई सांवला होता है तो कोई गेहुंआ। लेकिन आपने कभी यह नहीं सोचा होगा कि कोई व्यक्ति काला, गोरा या सांवला क्यों होता है, आखिर इसके पीछे का कारण क्या है। दरअसल किसी व्यक्ति का काला, गोरा या सांवला होना उसके स्वयं के हाथ में नहीं है। यह एक जैविक क्रिया है।
लेकिन किसी व्यक्ति के काले, गोरे या सांवले रंग के होने के पीछे कई कारण हो सकते है। इन कारणों में से एक कारण है मनुष्य के शरीर की त्वचा पर उपस्थित एक रंगीन पदार्थ, जिसे पिगमेंट कहा जाता है। मनुष्य के शरीर पर पाए जाने वाले मेलेनिन नामक पिगमेंट पर ही यह निर्भर करता है कि आपकी त्वचा का रंग कैसे होगा। अगर इसे विस्तार से समझा जाए तो जब हमारे शरीर के टिश्यू सूर्य से निकलने वाली पराबैगनी किरणों के संपर्क में आने से ज्यादा मात्रा में मेलेनिन बनाने लगते है तो त्वचा काली हो जाती है। इसी के विपरीत जब हमारे शरीर के टिश्यू कम मात्रा में मेलेनिन उत्पन्न करते है तो त्वचा गोरी हो जाती है। यही प्रक्रिया मनुष्य के गोरे, काले या सांवले होने का कारण बनती है।
इसी के साथ मनुष्य का काला या गोरा होना उसके आसपास के तापमान पर भी निर्भर करता है। उदहारण के लिए अफ़्रीकी देशों में तापमान अधिक होता है, जिसके चलते वहां के लोगों की त्वचा का रंग काला होता है। वहीं यूरोपीय देशों में तापमान कम रहता है, जिसके कारण वहां के लोग गोरे होते है। वहीं भारत में तापमान मिला-जुला होता है, इसलिए यहां रंगों में भी मिले-जुले लोग पाए जाते है। लेकिन भारत के तापमान के अनुसार यहां ज्यादातर लोगों का रंग सांवला होता है। इसी के साथ त्वचा के गोरे, काले या सांवले होने का अनुवांशिक कारण भी होता है। यदि किसी बच्चे के माता–पिता कर रंग काला होता है तो बच्चे का रंग भी काला होगा। वहीं अगर अभिभावक गोरे है तो उनका होने वाला बच्चा भी गोरा होगा।
अंत में हम यह ही कह सकते है कि किसी भी व्यक्ति के रंग का काला, गोरा या सांवला होना उसकी कार्यक्षमता या उसकी सुन्दरता का पैमाना नहीं हो सकता। मनुष्य अपने कर्मों और अपनी सोच से जाना जाता है। मनुष्य का कर्म ही उसकी सुन्दरता को प्रदर्शित करता है।
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Meri Mummy gori hai. Aur meri sister bhi lekin Mera skin dark hai Kyo.
पापा कैसे हैं