वैज्ञानिक बहुत समय से बुढ़ापे के साथ आने वाली समस्याओं के निवारण के साथ साथ, खुद बुढ़ापे के कारणों पर भी शोध कर रहे हैं। अलग अलग शोधकर्ता बुढ़ापे के अलग अलग कारणों की बात करते हैं। कुछ का मानना है के हमारी सूक्ष्मकोशिकाएं समय के साथ इस्तेमाल के कारण पुरानी और जर्जर हो जाती हैं, और हमारे शरीर के कार्यकलापों के निर्वहन नहीं कर पातीं, और कुछ का मानना है के किसी भी मशीन की तरह पूरा शरीर ही इस प्रक्रिया के साथ पुराना होकर हमारे जीवन का बोझ ही नहीं उठा पता और केवल कुछ हद तक ही इस का इलाज संभव हो पाता है। और इसके अतिरिक्त भी, कई ऐसे वैज्ञानिक भी हैं जो मानते हैं के हमारी कोशिकाएं सही चिकित्सा और “मरम्मत” के सहारे हज़ारों वर्षों तक भी जीवित रह सकती हैं, परन्तु आधुनिक चिकित्सा विज्ञान दुर्भाग्यवश अभी उतना विकसित नहीं हुआ है। यानि यदि हमारा चिकित्सा विज्ञान इतना विकसित होता, तो शायद हम कई सौ वर्षों तक युवा रह सकते थे।
सन 1882 में जीवशास्त्र के वैज्ञानिक ऑगस्ट वाइसमैन के द्वारा प्रदत्त ‘सेल डैमेज थ्योरी’ के अनुसार शरीर टूट फूट या ‘वियर एंड टेअर’ का शिकार हो जाता है। जैसे किसी कार का इंजन या कपड़ा बनाने वाली मशीन इस्तेमाल के साथ पुरानी और बेकार हो जाती है, उसी तरह हमारा शरीर भी वर्षों के इस्तेमाल और सही रख-रखाव के आभाव में जल्दी बूढा हो जाता है। लेकिन यदि अच्छा रख-रखाव मिल भी जाये तो बुढ़ापे को दूर ही रखा जा सकता है, पूरी तरह से ख़त्म नहीं किया जा सकता।
कुछ नई खोजों के अनुसार मिटोकॉण्ड्रिआ में मौजूद डीएनए समय के साथ बदल जाते हैं, और इसी बदलाव को भी बुढ़ापे का मुख्य कारण माना जा रहा है। इसी खोज को आधार बना कर कुछ वैज्ञानिक मानते हैं की कैलोरी का कम उपभोग बुढ़ापे की प्रक्रिया को धीमा कर सकता है, क्यूंकि अधिक वसा या फैट के कारण मिटोकॉण्ड्रिआ अधिक काम करती हैं और नतीजतन जल्दी बूढ़ी भी हो जाती हैं। पर ये सभी शोध अभी तक तो केवल वाद विवाद ही हैं, और सबसे सहज प्रक्रिया केवल सही भोजन, जीवनचर्या, सही कसरत और काम का संतुलन ही हैं।
दरअसल आधुनिक जीवन शैली ही जल्दी बुढ़ापे का सबसे सीधा कारण हो सकती है। शारीरिक मेहनत और अनियमित भोजन इत्यादि बुढ़ापे को बढ़ावा देने के साथ शरीर की रोग प्रतिकारक क्षमता को भी नुक्सान पहुंचाते हैं। और एक सोची समझी सन्तुलिक जीवन शैली काफी हद तक बुढ़ापे और उस से जुडी अनेकों समस्याओं का एक सरल उपाय हो सकती हैं
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