ऐसे जीव या पौधे जो अपना भोजन स्वयं बनाते है, एवं किसी के ऊपर निर्भर न रहकर एवं बिना किसी को हानि पहुचाये, अपना भरण-पोषण करते है, उन्हें स्वपोषी कहा जाता है। स्वपोषी श्रृखला के अंतर्गत पादपो को सम्मिलित किया गया है, क्योकि पादप एवं पौधे अपना भोजन प्राप्त करने के लिए सूर्य की किरणों, जल एवं कार्बोन डाई ऑक्साइड का इस्तेमाल करते है।
स्वपोषी भोजन प्रक्रिया:
स्वपोषी प्रक्रिया के अंतर्गत पेड़-पौधे, सूर्य के प्रकाश का अवशोषण करके, प्रकाश संश्लेषण प्रणाली का प्रयोग करते है। हरे पादपों एवम पौधों में क्लोरोफिल नामक एक तत्व पाया जाता है, जिससे पौधो को अपना भोजन बनाने में सहायता मिलती है।
पौधों द्वारा निर्मित भोजन का उपयोग अन्य पादपो एवं जीवो द्वारा भी किया जाता है। इस पूरी प्रक्रिया में सूर्य का प्रकाश, कार्बन डाई ऑक्साइड एवं जल का महत्वपूर्ण योगदान रहता है। उसी प्रकार क्लोरोफिल भी, प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया के लिए अहम् भूमिका अदा करता है।
क्लोरोफिल की उपयोगिता:
हरे रंग के पादपो के किनारों पर बहुत छोटे-छोटे छिद्र होते है, जिन्हें विज्ञानं में स्टोमेटा कहा गया है। और इन्ही हरे पादपो में क्लोरोफिल नामक एक तत्व पाया जाता है। स्टोमेटा, कार्बन डाई ऑक्साइड को पादप में प्रविष्ट करवाते है, एवं पादप मिटटी द्वारा अवशोषित जल एवं सूर्य के प्रकाश से अपना भोजन बनाने में सक्षम हो पाते है।
पादप द्वारा निर्मित भोजन शर्करा के रूप में पादप को पोषण देता है, जिसे वैज्ञानिक रूप से ग्लूकोज कहा जाता है, जो बाद में पौधे के दूसरे भागो में पंहुचा दिया जाता है।
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