परागकोश में पाये जाने वाले परागकणों का अण्डप में वर्तिकाग्र तक पहुंचना ही परागण कहलाता है। परागण निषेचन से पहले होता है।परागकणों को पादपों में पहुंचाने के लिए पादपों के आंतरिक भाग में अण्डाशय के ऊपर नलिका के रूप में “वर्तिका” पाई जाती है, इस वर्तिका का अग्रभाग (आगे का हिस्सा) ही वर्तिकाग्र कहलाता है।
परागकोशों में बनने वाले परागकण परिपक्व होते हुए नर युग्मक से युक्त हो जाते हैं तथा जब परागकोशों की भित्ति फट जाती है तो ये परागकण बाहर आ जाते हैं। लैंगिक जनन के लिए ये परागकण नर युग्मक के रूप मे भ्रुणकोष अर्थात् मादा युग्मक तक पहुँचते है।
परागण के तीन माध्यम होते हैं- जन्तु परागण, वायु परागण, जल परागण। परागकण अत्यधिक हल्के होने के कारण ये किसी जन्तु, वायु, जल आदि के माध्यम से एक स्थान से दूसरे स्थान पर पहुँच जाते हैं।
जन्तु परागण में परागकण जब किसी पक्षी या कीट-पतंगे पर चिपक जाते हैं और वह विचरण करता हुआ किसी पादप के पुष्प पर बैठता है तो परागकण उस पुष्प के वर्तिकाग्र पर गिर कर पादप को परागित करते हैं। वायु परागण में परागकण वायु के वेग से गमन करते हुए पादपों तक पहुँच जाते हैं तथा उन्हें परागित कर देते हैं।
जल परागण में परागकण जल के माध्यम से प्रवाहित होते हुए किसी पादप को परागित करते हैं। ऐसे में परागण जल की सतह पर भी हो सकता है तथा जल की सतह की नीचे भी हो सकता है।
परागण प्रमुखतः दो तरह से होता है – स्वपरागण व परपरागण।
स्वपरागण- जब परागकण एक पादप के किसी पुष्प के वर्तिकाग्र पर पहुँचते हैं तथा वहीँ से उसी पादप के अन्य पुष्पों के वर्तिकाग्र पर पहुंचते हैं तो इस प्रकार से होने वाला परागण स्वपरागण कहलाता है। स्वपरागण द्विलिंगी पादपों में होता है। इसमें एक पुष्प भाग लेता है। इसमें बाह्य परागण कारकों की उपस्थिति के बिना ही परागण हो जाता है। इसके उदाहरण हैं- मटर, टमाटर।
परपरागण- जब परागकण एक पादप के किसी पुष्प के वर्तिकाग्र पर पहुँचते है तथा वहाँ से अपनी ही प्रजाति के किसी अन्य पादप के पुष्पों के वर्तिकाग्र पर पहुँचते है तो यह परपरागण कहलाता है। परपरागण में पादप द्विलिंगी नहीं होते है। इसमें दो पुष्प भाग लेते हैं। इसमें परागण के लिए बाह्य परागण कारकों का होना जरूरी होता है। इसके उदाहरण हैं- गुलाब, पॉपी।
परागकण हल्के व चिकनी प्रवृत्ति के होते हैं तथा इनमें प्रचुर मात्रा में पोषक पदार्थ भी पाये जाते हैं। वर्तमान समय में विदेशों में परागकणों का प्रयोग कर के पराग उत्पाद निर्मित किये जा रहे हैं, जैसे- पराग गोलियाँ व सिरप आदि।
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