कोशिका चक्र सभी प्राणियों में होने वाली महत्वपूर्ण घटना है, जिसके द्वारा शरीर का विकास होता है एवं आने वाली पीढयों के लिए जीवन सम्भव हो पाता है| इसे एक आश्चर्यजनक घटना माना जाता है कि एक कोशिका से शुरू होकर इतने बड़े जीवों का निर्माण होता है| कोशिका विभाजन जनन प्रक्रिया का अहम् हिस्सा है जिसके अंतर्गत नई सन्तति का जन्म होता है|
कोशिका चक्र का अर्थ
कोशिका चक्र अलग-अलग प्रवस्थाओ से होकर गुजरता है, जिसमे एक कोशिका विभाजित होकर अन्य कोशिकाओं का निर्माण करती है| यह एक महत्वपूर्ण जैविक प्रक्रिया है, जिसमे द्विगुणन प्रणाली के अंतर्गत एक कोशिका से दो कोशिकाओं का निर्माण होता है| इसमें विभिन्न चरण सम्मिलित होते है, जिनके द्वारा कोशिका चक्र पूर्ण होता है|
साधारण शब्दों में हम कह सकते है कि संघटक की संश्लेष्ण व् जीनोम की द्विगुणन प्रक्रिया अर्थात दो सन्तति कोशिका का जन्म व् विकास जिन चरणों द्वारा सम्पन्न होता है, उसे कोशिका चक्र कहा जाता है| यह लगातार होने वाली प्रक्रिया है एवं मनुष्य में यह चक्र २४ घन्टे तक का होता है| इसी प्रकार अलग-अलग जीवों में इस प्रक्रिया का समय अलग हो सकता है| कोशिका चक्र की दो मुख्य अवस्थाए होती है, जो इस प्रकार है:-
अंतरावस्था
कोशिका चक्र का अधिकतर चक्र अंतरावस्था का होता है, जिसमे ९५% तक का समय अन्तराल अवस्था या अंतरावस्था का गिना जाता है| इस प्रक्रिया में जीनोम संश्लेष्ण तेजी से होता है जिसमे कोशिका अपने आकार से दोगुनी हो जाती है| उदाहारण के रूप में, जैसे मनुष्य के कोशिका चक्र का समय २४ घन्टे का होता है जिसमे से केवल एक घन्टे का समय कोशिका विभाजन का होता है, बाकी समय कोशिका चक्र का होता है|
अंतरावस्था की आगे ३ प्रवास्थाये होती है, जो इस प्रकार है:-
पश्च सूत्री अन्तराल (G1 फेज):
इस अवस्था को पहला वर्धन समय भी कहा जाता है| इस अवस्था में DNA के संश्लेष्ण एवं प्रतिकृतिकरण की तैयारी के लिए कोशिका को पर्याप्त समय मिल जाता है| कोशिका विभाजन के पश्चात अनुकूल परिस्थिति आते ही कोशिका की पुन: वृद्धि शुरू हो जाती है, एवं कोशिका अगले चरण में प्रवेश करती है| सभी जीवों में कोशिका जरूरत के अनुसार विभाजित होती है, जब मृत कोशिकाओ को बदलने की आवश्यकता होती है|
संश्लेष्ण प्रावस्था (S फेज):
कोशिका चक्र की अन्तरवस्था के इस चरण में DNA का उचित रूप से निर्माण होता है, जिसमे DNA की मात्रा में दोगुनी बढ़ोतरी होती है, जबकि इसमें गुणसूत्रों की संख्या ज्यो की त्यों बनी रहती है, उसमे कोई परिवर्तन नहीं होता| इसमें अगले चरण में प्रवेश करने हेतु कोशिका वृद्धि के अंतर्गत प्रोटीन का निर्माण भी होता है| पश्च सूत्री विभाजन से कोशिका निष्क्रिय अवस्था में प्रवेश करती है, जिसे शांत अवस्था या G० भी कहा जाता है|
पूर्व सूत्री विभाजन अन्तरालकाल अवस्था (G2 फेज):
इस फेज के अंतर्गत कोशिका चक्र अपने आप को अगले महत्वपूर्ण चरण के लिए तैयार करती है| इसमें पादपों एवं जीवों के सूत्री विभाजन में अन्तर होता है|
एम् प्रावस्था या सूत्री विभाजन या समसूत्री विभाजन
इस प्रक्रिया में सन्तति एवं जनन कोशिकाओं की संख्या समान हो जाती है इसलिए इसे सम-विभाजन अवस्था भी कहा जाता है| यह कोशिका चक्र क्रिया की नाटकीय स्थिति होती है जिसमे कोशिका के घटकों का बड़े पैमाने पर पुन: गठन शुरू होता है|
सूत्री विभाजन को 4 मुख्य अवस्थाओं में विभाजित किया गया है, जो इस प्रकार है:-
पूर्वावस्था:
इस अवस्था में पिछली अवस्थाओं से गुजरकर आने वाले DNA के सूत्र स्पष्ट नहीं होते एवं आपस में उलझे हुए होते है, उस प्रक्रिया के द्वारा गुणसूत्रों में स्पष्टता आने लगती है| इस अवस्था के दौरान गुणसूत्रों का द्रव्य रूप ठोस का रूप लेने लगता है| इसमें कोशिका की सूक्ष्म नालियों का निर्माण होता है| किन्तु यदि सूक्ष्मदर्शी यंत्र द्वारा देखा जाए तो कोशिका में केन्द्रक, गाल्जिकाय आदि स्पष्ट रूप से दिखाई नहीं देते|
मध्यावस्था:
मध्यावस्था या द्वितीय अवस्था के अंतर्गत गुणसूत्र स्पष्ट होकर संघनित हो जाते है एवं कोशिका द्रव्य में फ़ैल जाते है| इस प्रक्रिया के बाद कोशिका का अध्ययन करने में स्पष्टता आने लगती है| सभी गुणसूत्र एक बिंदु से जुड़े होते है, जिनकी सतह पर काईनेटोकोर होता है, जो एक छोटे बिब्म के जैसी सरंचना होती है| इस अवस्था में गुणसूत्र एक पंक्ति में व्यवस्थ्ति हो जाते है, जिसे मध्यावस्था पट्टी भी कहा जाता है| इसमें गुणसूत्रों का पंक्तिबध होकर गुणसूत्र सूक्ष्म तंतुओ से जुड़े रहते है, जो इस अवस्था की विशेषता है|
पश्चावस्था:
इस अवस्था के अंतर्गत मध्यावस्था पट्टिका पर एकत्रित हुए गुणसूत्र फिर से अलग होने की प्रक्रिया में सलंग्न होने लगते है, इसलिए इन्हें सन्तति अर्द्धगुणसूत्र भी कहा जाता है| ये अर्द्धगुणसूत्र मध्यावस्था पट्टिका से दूर जाकर विपरीत ध्रुवों की और गमन करते है|
अंत्यावस्था:
इस अवस्था में गुणसूत्र विपरीत अवस्था की और जाते हुए एकत्रित होने लगते है एवं इनके स्वय के अस्तित्व की पहचान समाप्त हो जाती है| इसमें गुणसूत्रों के चारो और झिल्ली का निर्माण होने लगता है, जिसे केन्द्रक झिल्ली कहते है|
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