सूरज की धूप जब हमारे ग्रह के अलग अलग भागों पर पड़ती है तो वहां की सतह अलग अलग तीव्रता से गर्म होती है। और उस सतह, फिर चाहे वो जल हो या ज़मीन, के संपर्क में आने वाली हवा भी तापमान के बढ़ने गर्म होने लगती है। हवा भी बाकी सभी भौतिक पदार्थों की तरह गर्म होने पर फैलती है। और फैलने के साथ ही उसका घनत्व भी कम होने लगता है।
ये गर्म हवा अपेक्षकृत ठंडी हवा से कहीं हल्की होती है। और इसलिए ऊपर की ओर उठने लगती है। पर क्यूंकि ऊपर उठती हुई हवा अपने पीछे खली स्थान छोड़ने लगती है ऐसे स्थानों पर हवा का दबाव कम होने लगता है और एक खालीपन या वैक्यूम बनने लगता है। इसी खाली जगह को भरने के लिए ठंडे स्थानों से वायु आने लगती है। वायु की यही यात्रा हमे हवा के झोंकों के रूप में महसूस होती है। ऐसा भी कई बार होता है की हमे हवाओं का “ठंडापन” महसूस न हो लेकिन हवा अपेक्षाकृत ठंडी व भारी होती ही है।
ठंडी हवाएं फिर गर्म सतह के संपर्क में आने से कुछ समय बाद गर्म होकर उसी प्रक्रिया में एक बार फिर से शामिल हो जाती हैं। यानि ऊपर उठने लगती है। और तापमान में आने वाले इसी निरंतर बदलाव के कारण वायु का यह आवागमन जारी रहता है।
धरती के गोल आकर के कारण और अलग अलग प्राकृतिक संरचनाओं के कारण भी, पूरे ग्रह पर सूरज की किरणें हर जगह बराबर नहीं पडतीं। सूर्य के सामने पड़ने वाली सतहों पर धुप की किरणें सीधी पड़ती हैं और ये सतहें ज़्यादा गर्म हो जाती हैं, जबकि अन्य भागों पैर ये धुप की किरणे तिरछी पड़ती हैं, और अपेक्षकृत कम प्रभावी भी होती हैं। और इसीसे हमारे ग्रह को उसकी इतनी विशिष्ट विकविधताएँ मिलती हैं। गर्म और ठंडी सतहों के इसी तालमेल से हवाओं का आना जाना और झोंकों का मेहसूस होना संभव हो पाता है।
इन अलग-अलग तापमानों वाले इलाकों से हवा को उसकी गति प्राप्त होती है। अलग अलग पदार्थों की सतहों से भी हवा के तापमान पर काफी फर्क पड़ता है। जैसे समुद्र के पास हवाओं में गति काफी तीव्र होती है। जमीन की तुलना में पानी देर से गर्म या ठंडा हो पाता है। धरती के अपनी धुरी पर घूमने से भी वायु की गति प्रभावित होती है। यानि जब धरती के पश्चिम से पूर्व की ओर घूमती है तब पश्चिमी हवाएं चलती हैं। दक्षिणी गोलार्द्ध में हवाएं बाईं ओर और उत्तरी गोलार्द्ध में दाईं ओर चलती हैं।
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