पृथ्वी पर पाए जाने वाले सभी जीवों में उनके गुण, रूप आदि के आधार पर विभिन्नता पाई जाती है, और यही गुण या विशेषता पीढ़ी दर पीढ़ी आने वाली संतानो को स्थानांतरित होते रहते है, इसी विशेषता या गुणों को पैतृक गुण या आनुवंशिक गुण कहते है एवं इस सम्पूर्ण प्रक्रिया को आनुवांशिकता कहा जाता है|
साधारण शब्दों में कहा जा सकता है कि जीन्स का एक से दूसरे जीव में जाना आनुवंशिकता कहलाता है, जो सदियों से एवं निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है| आनुवंशिकी या Genetics शब्द ग्रीक भाषा से लिया गया है, जेन का अर्थ होता है- होना या बढना| यह जीव विज्ञानं की एक महत्वपूर्ण शाखा है, जिसमे जीवों के विकास के क्रम के अंतर्गत उनके गुणों का अध्ययन किया जाता है|
ग्रेगर जॉन मेंडल को आनुवांशिकी विज्ञानं का पिता माना जाता है, जो ऑस्ट्रिया नामक जगह के एक पादरी थे| इन्होने आनुवंशिकी विज्ञानं से सम्बन्धित कई महत्वपूर्ण खोजे की एवं आधुनिक एवं नये सिद्धांतों का परिचय करवाया|
आनुवंशिकता के नियम या सिद्धान्त
मेंडल के नियम के अनुसार पृथ्वी पर उपस्थित सभी जीवो का निर्माण या जन्म कोशिका के द्वारा सम्भव हो पाता है, इन कोशिकाओं में एक निश्चित मात्रा में गुणसूत्र पाए जाते है, जो प्रत्येक जाति के अलग-अलग होते है, इन गुणसूत्र या क्रोमोसोम्स के अंदर जीन्स पाए जाते है, जो एक प्रकार की रासायनिक सरंचना होती है| कोशिका में उपस्थित ये जीन्स किसी प्राणी के अपने पूर्वजो से मिलते-जुलते होने, कार्य एवं आकार को निश्चित करने आदि के लिए जिम्मेवार माने जाते है एवं आने वाले जीव किस प्रकार अपने पूर्वजो से यह गुण ग्रहण करते है इन सबका अध्ययन करना ही आनुवंशिकी विज्ञानं का मूल आधार एवं सार है|
ग्रेगर जॉन मेंडल ने मटर के पौधे से अपनी खोज की शुरुआत की, जिसमे उन्होंने मटर के बीजो के 7 गुणों को चुना, जिसमे बीजो के आकार, गुण, रंग, आकृति, लम्बाई आदि के आधार पर उनका निरिक्षण किया| उनके अनुसार मटर के जोड़े में दूसरे जोड़े के गुण को दबाने या अप्रभावी करने की क्षमता होती है एवं इसके लिए उन्होंने अंग्रेजी भाषा के T को प्रभावी लक्ष्ण के रूप में तथा छोटे t को अप्रभावी लक्ष्ण के रूप में स्पष्ट किया, जिससे इन्हें समझने में आसानी हो सके| जैसे पौधे के प्रभावी गुण जैसे लम्बाई के लिए बड़ा T एवं उसके बौनेपन के लिए छोटा t का प्रयोग किया गया|
मेंडल ने अपने प्रयोगों से सम्बन्धित जानकारी को १८६६ ई. में पत्रिका में भी प्रकाशित करवाया जिसका नाम था Annual proceedings of the natural history of Brunn, किन्तु उस समय इस विषय पर खास ध्यान नहीं दिया गया, फिर ३४ वर्षो के बाद अर्थात उनकी मृत्यु के बाद उनके प्रयोगों की महत्ता को समझा गया एवं उसे वैज्ञानिक मान्यता प्रदान की गयी|
मेंडल के आनुवंशिकता के नियम के अनुसार प्रत्येक जीव में उपस्थित जनन कोशिका में समान गुण के लिए मुख्य रूप से दो कारक जिम्मेवार होते है, जिसके अनुसार जब दोनों कारक एक जैसे हो तो ये समयुग्मजी (TT) कहलाते है, किन्तु जब ये कारक असमान हो तो ये विषमयुग्मजी (Tt) कहलाते है|
मेंडल के आनुवंशिकता के नियम के अनुसार एकसंकरीय क्रॉस प्रणाली एवं द्विसंकरीय क्रॉस प्रणाली का जन्म हुआ जिसमे उन्होंने विपरीत गुणों वाली एक जोड़ी व् दो जोड़ी का अध्ययन किया जिसके प्रमाणित परिणाम सामने आये, जिसका विवरण इस प्रकार है:-
एकसंकरीय क्रॉस प्रणाली
इस प्रणाली के अंतर्गत मेंडल ने दो बिलकुल गुणों वाले मटर के पौधो को चुना जिसमे से एक लम्बा व् दूसरा बौना था| इन दोनों पौधो के बीच समान इकाई के आधार पर संकरण करवाया गया इसलिए इसे एक संकरण क्रॉस प्रणाली कहा जाता है| इसमें प्रथम पीढ़ी यानी लम्बे पौधे को F1 का नाम दिया गया एवं द्वितीय पीढ़ी यानि बौने पौधे को F2 का नाम दिया गया|
दोनों पीढियों का आपस में जब संकरण करवाया गया तो F1 से उत्पन्न हुए पौधे लम्बे थे एवं सभी पौधो को F1 या प्रथम पीढ़ी के पौधे कहा जाने लगा, F1 पीढ़ी का F2 से सीधा क्रॉस करवाने पर प्राप्त होने वाला अनुपात 3:1 था जिसे एक संकरीय अनुपात भी कहा जाता है, इसके अंतर्गत 3 पौधो में १ पौधा पूर्णत लम्बा या TT, दूसरा समान्य या मिश्रित लम्बाई वाला या Tt एवं तीसरा पूर्णत: बौना या tt था|
इस प्रणाली के अंतर्गत यह तथ्य भी सामने आया कि लम्बे पौधे सर्वदा लम्बे पौधो का निर्माण करेंगे इसी प्रकार बौने पौधे संकरण के द्वारा हमेशा बौने पौधो का निर्माण करेंगे| यदि F2 का F3 पीढ़ी के साथ संकरण करवाया जाए तो पूर्णत: बौने पौधो का निर्माण होगा, उदाहारण स्वरूप:
tt*tt = tt
यदि मिश्रित लम्बाई वाले पौधे को मिश्रित बौने पौधे के साथ क्रॉस करवाया जाये तो भी अनुपात 3:1 रहेगा जिसके अंतर्गत ३ लम्बे पौधे एवं एक बौना पौधा प्राप्त होगा|
TT – शुद्ध या पूर्णत: लम्बा पौधा
Tt – मिश्रित लम्बा
tt – शुद्ध या पूर्णत: बौना पौधा
द्विसंकरीय क्रॉस प्रणाली
इस प्रणाली के अंतर्गत मेंडल ने दो विपरीत गुणों वाले जोड़ो का आपस में क्रॉस करवाया जिसमे उन्होंने गोल एवं पीले बीज एवं हरे झुर्रीदार बीजो को चुना| उन्होंने दोनों बीजो को RRYY एवं rryy के चिन्ह से प्रकट किया| इसमें गोल व् पीले बीज अधिक प्रभावी थे एवं हरे झुर्रीदार बीज कम प्रभावी या अप्रभावी होते है| इस क्रॉस प्रणाली में मेंडल के आनुवंशिकता का पृथक्करण का नियम लागू किया गया जिससे 4 प्रकार के बीजो का निर्माण हुआ|
जब RY बीज का ry के साथ संकरण करवाया गया तो प्राप्त होने वाले बीज अधिकांशत: गोल एव पीले थे जो इनके प्रभावी गुण के कारण सम्भव हो पाया|
मेंडल के आनुवंशिकता के नियम या Mendal’s Law
मेंडल ने एक संकरीय क्रॉस एवं द्विसंकरीय क्रॉस प्रणाली के आधार पर तीन नियमों को महत्व दिया जिसे मेंडल के आनुवंशिकता के नियम कहा जाता है| इसमें प्रथम दो नियम का आधार एक संकरीय क्रॉस प्रणाली एवं अंतिम नियम का आधार द्विसंकरीय क्रॉस प्रणाली को माना जाता है| मेंडल के आनुवंशिकता के नियम इस प्रकार है:-
१.प्रभाविकता का नियम:
इस नियम के अंतर्गत जब मेंडल ने एक जोड़े का दूसरे जोड़े के साथ संकरण करवाया तो प्रथम गुण अधिक प्रभावी रहा, जैसे मटर के पौधे के क्रॉस के दौरान लम्बा पौधा बौने पौधे से अधिक प्रभावी रहा एवं अधिकतर लम्बे पौधे का निर्माण हुआ|
२.पृथक्करण का नियम:
पृथक्करण के नियम के अनुसार प्रत्येक जोड़े में कारक विद्यमान होते है, जिनका युग्मको तक पहुचना अनिवार्य होता है, किन्तु एक समय में केवल एक ही कारक जा सकता है, इसलिए इस नियम को “युग्मको के शुद्धता के नियम” के नाम से भी जाना जाता है| इसके अंतर्गत F1 पीढ़ी का F2 पीढ़ी से क्रॉस करवाने पर लम्बे पौधे प्राप्त होते है किन्तु जब स्व-परागण द्वारा पुन: संकरण करवाया गया तो बौना पौधा भी प्राप्त हुआ जिनका अनुपात 3:1 रहा|
३.स्वतंत्र अप्व्युह का नियम:
इस नियम के अनुसार कई प्रकार के जोड़े इसे होते है, जो अपने आप में स्वतंत्र होते है, ये जीव निर्माण या अपनी संख्या को बढ़ाने हेतु मिश्रित रूप से स्वतंत्र होकर अलग प्रकार के जीवों का निर्माण भी कर सकते है|
आनुवंशिक विभिन्नता
सभी जीवों में आनुवंशिक विभिन्नता का स्त्रोत उत्परिवर्तन को माना जाता है, जिससे नई प्रजाति के निर्माण में सहायता मिलती है| किसी जीव में उपस्थित गुन्सुत्रो की स्थिति एवं रचना में बदलाव उत्परिवर्तन को जन्म देता है| आनुवंशिक पुनर्योग को भी आनुवंशिक विभिनता के लिए जिम्मेवार माना जा सकता है, इसके अंतर्गत संतानों के गुण परिस्थिति एवं वातावरण के अनुसार पैत्रको के गुणों से अलग हो सकते है|
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pariccharbh sankarad ki pari bhasa