Introduction :
डिप्थीरिया एक प्रकार का संक्रामक, जानलेवा और खतरनाक बीमारी है जो प्रायः बच्चों को हुआ करता है यह गर्दन में होता है डिप्थीरिया होने का मुख्य कारण दूषित जल एवं भोजन के माध्यम से Corynebacterium diptheriae नामक जीवाणु का शरीर में प्रवेश कर जाना। जिसका इलाज न कराने पर बच्चे की मौत हो जाती है। डिप्थीरिया के टीके को ( DTAP ) नाम से जाना जाता है। यह आमतौर पर काली खांसी और टेटनस के टिके के साथ दिया जाता है पर इस टीके का असर 10 सालों तक ही रहता है इसलिए अपने बच्चों को 12 साल के आसपास फिर से टीका लगवाए।
Etiology :
डिप्थीरिया के जीवाणु मरीज के नाक और गले में रहते हैं। डिप्थीरिया एक व्यक्ति से दूसरे व्यक्ति में खांसने और छींकने से आसानी से फैल जाता है संक्रमित बच्चे के साथ रहने से, बच्चे द्वारा जहां-तहां की मिट्टी खाने से, सुई, आलपीन या मछली का कांटा इत्यादि गर्दन में फंस जाने से डिप्थीरिया हो सकती है। बारिश के मौसम में डिप्थीरिया सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचाता है इस समय इसके जीवाणु सबसे अधिक फैलते हैं। डिप्थीरिया के लक्षण संक्रमण फैलने के 2 से 5 दिनों में दिखाई देते हैं ।
Symptoms :
डिप्थीरिया वाले मरीज के गर्दन में अंदर से घाव हो जाता हैं। बच्चा खाने पीने यहां तक कि बोलने में भी असमर्थ हो जाता है। बच्चे को कभी कभी बुखार आता है थूक एवं लार में खून दिखाई देते हैं एवं मुंह से बदबू आती है डिप्थीरिया संक्रमण फैलने पर सांस लेने में कठिनाई होती है इसके अलावा गर्दन में सूजन हो जाती है साथ ही गले में दर्द होती है।
Manegement :
डिप्थीरिया वाले मरीज को अस्पताल पहुंचाकर अच्छे डॉक्टर से इलाज करवाना चाहिए। जख्म एवं बुखार को नियंत्रण में रखने के लिए अच्छा एंटीबायोटिक का प्रयोग करना चाहिए। बच्चे पर हमेशा निगाह रखना चाहिए कि कहीं वह मिट्टी या गंदे पदार्थ तो नहीं खा रहा है। दांत को सुई, आलपिन तथा अन्य किसी इस्पात से नहीं खोदना चाहिए। शुद्ध एवं ताजा भोजन का सेवन करना चाहिए। जिस घर में छोटे बच्चे हैं उस घर की महिला को चाहिए कि जहां-तहां कचड़े ना फेंके, घर आंगन को हमेशा साफ-सुथरा रखें। डिप्थीरिया के इलाज में लापरवाही नहीं बरतनी चाहिए, इसमें देरी होने पर जीवाणु पूरे शरीर में तेजी से फैलते हैं।
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