ब्लैक होल के बारे में हम सबने अनुमन सुना ही है। यह शोध और चर्चा दोनों का विषय है, इस विषय की गंभीरता से वैज्ञानिक भी भलीभांति परिचित है इसी कारण कई वैज्ञानिक सम्मेलनों में भी इस विषय पर चर्चा की जा चुकी है। सिर्फ वैज्ञानिक ही नहीं बल्कि आम लोगों के बीच में भी इसको जानने के पीछे जिज्ञासा उत्पन्न हो जाती है। आखिर यह है क्या ? यह कैसे बना ? क्या इसका रंग सचमुच काला है ? यह ऐसे प्रश्न है जो स्वतः ही मन में उठते रहते हैं। बता दें ब्लैक होल से अभिप्राय ऐसी खगोलीय शक्ति से है, जिसका गुरुत्वाकर्षण बल कई 100 गुना ज़्यादा शक्तिशाली होता है।
ज़ाहिर है इतने तेज खिंचाव से किसी का बच पाना संभव नहीं है, इससे कोई नहीं बच सकता न ही समय और न ही प्रकाश। ब्लैक होल पर शोध कर रहे वैज्ञानिकों का मानना है कि इसमें एकतरफा सतह होती है, इसे घटना क्षितिज नाम दिया गया है। इसका अर्थ यह है इसमें वस्तुएं गिर तो सकती है मगर इससे बाहर आ पाना मुश्किल ही नहीं ना मुमकिन है। इसके सबसे बड़े गुणों में से एक है यह अपने ऊपर पड़ने वाले सम्पूर्ण प्रकाश को अवशोषित तो कर लेता है मगर इसका कोई रिफ्लेक्शन नहीं देता। इसके संदर्भ में कहा जाता है कि यह अंतरिक्ष में स्थित एक ऐसा वर गर्त है, इस गर्त में फंस कर हम नीचे से कहीं अन्य सृष्टि में भी पहुँच सकते हैं। दरअसल जब एक विशाल तारा मरता है, तो अपने तर की ओर गिरने लग जाता है। गिरते-गिरते वह इतना सिकुड़ जाता है कि अपने तर में सब कुछ समा लेने की कोशिश करता है। इसका परिणाम यह होता है कि इसकी ओर जाने वाली गैस तपने लग जाती है और एक्स किरण छोड़ने लग जाती है। इसी सिद्धांत से ब्लैक होल का अनुमान लगाया गया है। अभी तक ऐसा कोई सिद्धांत अस्तित्व में नहीं आया है जो प्रमाणिक हो।
दरअसल इसको देख पाना संभव नहीं है, क्योंकि यह अन्य पदार्थों के साथ क्रिया कर अचानक अपनी उपस्थति प्रकट कर देता है। वैसे तो इसका पूर्वानुमान कर पाना संभव नहीं है मगर फिर भी इसका अगर पुर्वानुमान लगाना ही हो तो तारों के उस समूह की गति पर नजर रख कर लगा सकते हैं, जो दूर अंतरिक्ष में किसी खाली दिखाई देने वाली जगह की परिक्रमा करने लग जाते हैं। एक वैकल्पिक विधि के द्वारा ब्लैक होल में गैस को गिरते हुए आप देख सकते हो। यह गैस जब ब्लैक होल में समाती है तो इसका आकर सर्पिला हो जाता है और यह इतने उच्च ताप पर गर्म हो जाती है कि बड़ी मात्रा में विकिरणछोड़ने लग जाती है, इसका पता पृथ्वी पर स्थित या पृथ्वी की कक्षा में घूमती दूरबीनों के माध्यम से आसानी से लगा सकते हैं। ऐसे प्रयोगों से और उनके परिणामों से वैज्ञानिकों ने सर्वसम्मति से ब्लैक होल के अस्तित्व को स्वीकार किया है।
ब्लैक होल का आकार
ब्लैक होल का कोई आकार निश्चित नहीं है यह या तो बहुत छोटे हो सकते है या बहुत बड़े भी हो सकते है। वैज्ञानिकों ने अपने शोध में यह पाया कि छोटे ब्लैक होल का आकार एक एटम जितना हो सकता है मगर इसका द्रव्यमान एक पहाड़ जितना होता है। वहीं एक और ब्लैक होल का अनुमान भी लगाया गया है जिसे स्टेलर नाम दिया गया है। कहा जाता है इसका द्रव्यमान सूर्य के द्रव्यमान से भी 20 गुना ज़्यादा होता है। हमारी आकाशगंगा में इस तरह के विशाल द्रव्यमान वाले कई स्टेलर ब्लैक होल्स मौजूद है। इनका द्रव्यमान एक मिलियन सूर्य के द्रव्यमान के बराबर होता है। जैसा कि आप जानते हैं हमारी आकाशगंगा को मिल्की वे कहते हैं। और इस द्रव्यमान के ब्लैक होल को ‘सुपरमैसिव’ कहा जाता है। वैज्ञानिकों के अनुसार हर मिल्की वे गैलेक्सी के केंद्र में सुपरमैसिव ब्लैक होल होने के तथ्य मिलते हैं।
ब्लैक होल ने कैसे लिया आकार
वैज्ञानिकों का मत है कि ब्लैक होल का निर्माण ब्रह्माण्ड के शुरूआती दौर से ही शुरू हो गया था। स्टेलर ब्लैक होल्स के निर्माण की स्थिति तब उत्पन्न होती है जब आकाशीय केंद्र का बहुत बड़ा तारा अपने आप इसके अंदर गिर जाए या अचानक नष्ट हो जाए। इस घटना को सुपरनोवा नाम दिया गया है। सुपरमैसिव ब्लैक होल का निर्माण आकशगंगा के जन्म के साथ ही हो गया था।
इस तरह लगा पता
ब्लैक होल को देख पाना संभव नहीं है इसकी वजह यह है क्योंकि कि यह प्रकाश को तेजी से अपनी और खींचता है। ब्लैक होल कैसे अपने गुरुत्वाकर्षण बल का प्रयोग कर आसपास की गैस और तारों को अपने अन्दर समाहित कर लेता है यह देख पाना किसी भी वैज्ञानिकों के लिए संभव नहीं है। हलांकि वैज्ञानिक इस बात का अध्यन जरुर कर सकते हैं कि कैसे ब्लैक होल के चारों ओर उड़ते हैं। जब तारे ब्लैक होल के निकट आ जाते हैं तो इसमें से तेज प्रकाश का उत्सर्जन होने लग जाता है। यह प्रकाश इतना तीव्र होता है कि इंसानों का इसे देख पाना संभव नहीं है।अंतरिक्ष में इस तरह के प्रकाश को देखने के लिए वैज्ञानिक सैटेलाइट और टेलिस्कोप जैसे उपकरणों का प्रयोग करते हैं।
क्या पृथ्वी नष्ट हो सकती है ?
अनुमन लोगों की धारणा होती है कि ब्लैक होल का आहार तारे, चंद्रमा, ग्रह और उपग्रह है, मगर यह अवधारणा गलत है। लोगों के मन में यह मानसिकता बन चुकी है कि हमारी प्रथ्वी ब्लैक होल में समा जाएगी लेकिन यह पुर्णतः सत्य नहीं है। क्योंकि कोई भी ब्लैक होल हमारे सोलर सिस्टम के निकट नहीं है। कहा तो यह भी जाता है कि अगर ब्लैक होल का द्रव्यमान सूर्य के द्रव्यमान की बराबरी भी कर ले उसके बाद भी पृथ्वी ब्लैक होल के अंदर नहीं समा सकती। क्योंकि जब ब्लैक होल का गुरुत्वाकर्षण सूर्य के बराबर या ज़्यादा हो जाएगा, तो ऐसी स्थिति में पृथ्वी और अन्य प्लेनेट्स ब्लैक होल के आॅरबिट (कक्ष) में होंगे, बिलकुल वैसे ही जैसे आज वे सूर्य के आॅरबिट में हैं।
दरअसल एक सितारे का अंत ब्लैक होल ही है, मगर फिर भी हमें इससे चिंतित होने की आवश्यकता नहीं है।
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