भारत एक ऐसा देश है, जहाँ पशुधन प्रचुर मात्रा में पाया जाता है। यहाँ पशुपालन भी सर्वाधिक किया जाता है। अतः इन मवेशियों के उत्सर्जन पदार्थों की भी अधिकता हो जाती है। इसका भी सदुपयोग किया जाता है|
पशुओं के उत्सर्जन पदार्थों यानि कि गोबर के इस्तेमाल से गोबर गैस बनाई जाती है। गोबर गैस को जैव गैस या बायोगैस भी कहते हैं।
पशुओं के गोबर व अन्य उत्सर्जन पदार्थों को मिलाकर गोबर गैस संयन्त्र की सहायता से इनमे से गैस प्राप्त की जाती है। गोबर गैस में सर्वाधिक मात्रा में मेथेन गैस उपस्थित रहती है, जो कि एक ज्वलनशील गैस है तथा इसमें जलने के दौरान धुंआ भी नही निकलता है। इसका प्रयोग कई कार्यों के लिए किया जा सकता है, जैसे- खाना बनाने, आग जलाने व ईंधन के रूप में किसी भी कार्य में इस्तेमाल की जा सकती है।
ईंधन के रूप में प्रयोग में लिए जाने वाले अन्य वस्तुएं जैसे लकड़ी या कोयला आदि को जलाने पर इनमें से राख व कुछ अन्य अवशिष्ट पदार्थ शेष रह जाते हैं, परन्तु गोबर गैस में ऐसे कोई अवशिष्ट पदार्थ नही रहते हैं। यह पूर्ण रूप से ज्वनलशील प्रकृति की होती है।
गोबर गैस की निर्माण विधि-
गोबर गैस निर्मित करने वाले संयन्त्र में 10-15 फ़ीट गहराई वाला एक टैंक होता है। इस टैंक में पशुओं के अपशिष्ट पदार्थ व गोबर को डालते हैं और इसे ढक दिया जाता है। इस टैंक को डायजेस्टर भी कहा जाता है। गोबर में पाये जाने वाले सूक्ष्मजीवियों के परस्पर क्रियायें होने के कारण गैस उत्पन्न होती है। इस गैस की निकासी के लिए संयन्त्र से एक पाईप जुड़ी हुई होती है। गैस निकलने के बाद टैंक में जो उत्पाद शेष रह जाता है, उसे कर्दम या घोल कहा जाता है। इस कर्दम की निकासी के लिए भी अन्य निकास क्षेत्र की सुविधा भी संयन्त्र में होती है।
गोबर गैस संयन्त्र दो तरह के होते हैं-
# फ्लोटिंग ड्रम बायोगैस प्लान्ट- इसे तैरते ड्रमनुमा गोबर गैस संयन्त्र कहा जाता है। इसमें धातु का एक ड्रम बना होता है, जो ऊपर नीचे चलता रहता है, जिसमें गैस एकत्रित की जाती है। इस ड्रम में गोबर व पानी की समान मात्रा डाली जाती है। ये अधिक लागत के गैस संयन्त्र होते हैं।
# फिक्स्ड ड्रम बायोगैस प्लान्ट- इसे स्थिर गुम्बदनुमा गोबर गैस संयन्त्र कहा जाता है। इस गैस संयन्त्र का मूल्य अपेक्षाकृत कम होते है तथा इनका उपयोग भी ज्यादा होता है।
गोबर गैस की महत्व व उपयोगिता-
गोबर गैस अशुद्धि विहीन गैस है तथा इसे बनाने के लिए रासायनों का भी प्रयोग नही किया जाता। इसी के साथ गोबर गैस के प्रयोग से हम अन्य ईंधनों की बचत भी कर सकते हैं तथा फलस्वरूप खर्चों में भी कमी लायी जा सकती है। उदाहरण के तौर पर इस बचत को समझ सकते हैं कि यदि एक घन मीटर गोबर गैस का प्रयोग किया जाये तो इस से 3.5 किलोग्राम लकड़ी, 0.62 लीटर केरोसीन, 1.5 किलोग्राम कोयला तथा 0.5 यूनिट विद्युत की बचत सम्भव हो सकती है, जो कि आर्थिक दृष्टि से भी महत्वपूर्ण सिद्ध होगा।
जब गोबर गैस निर्मित की जाती है तो इसके अन्तिम चरण पर बनने के बाद इसका एक सह उत्पाद शेष रह जाता है। यह एक प्रकार के घोल के रूप में होता है, जिसे कर्दम कहते हैं। इस घोल को भी उपयोगिता यह होती है कि यह गोबर से निकला उत्पाद गुणवत्ता से युक्त होता है और कार्बनिक खाद के रूप में इसका इस्तेमाल खेतों में किया जाता है, जो फसलों के लिए लाभकारी होता है। इसमें कई पोषक तत्व पाये जाते हैं। इसके अलावा मत्स्यपालन के कार्य में भी इस घोल का उपयोग किया जाता है।
गोबर गैस को चूल्हा जलाने के लिए उपयोग में लिया जाता है। घरों में सामान्यतः एल.पी.जी. गैस वाले चूल्हे का इस्तेमाल होता है, वहीं एल.पी.जी. गैस के स्थान पर गोबर गैस का भी प्रयोग किया जा सकता है तथा उसी प्रकार इस पर रोटी, सब्जी व अन्य कार्य किये जा सकते हैं।
इसके अतिरिक्त जहाँ विद्युत कटौती रहती हो या कुछ गाँवों में जहाँ विद्युत न पहुंचती हो तो गोबर गैस का इस्तेमाल लैम्प आदि जलाने में किया जाता है।
कुछ उपकरणों के इन्जन की क्रियान्विति के लिए भी गोबर गैस से ऊर्जा प्राप्त की जा सकती है। कृषि कार्यों में काम आने वाले उपकरणों जैसे थ्रेशर, चारा काटने की मशीन, कुएं से पानी निकालने आदि उपकरणों को चलाने में गोबर गैस सहायक होती है|
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