पेन एक ऐसी वस्तु जो बहुत ही साधारण सी मालूम पड़ती हैं, किन्तु उससे कहीं अधिक आवश्यक भी हो गयी है। आजकल के समय में पेन का इस्तेमाल करना आदत में शुमार हो गया है, दिनचर्या का हिस्सा बन चुका है। पेन न होता तो ज्ञान भी न बढ़ता, क्योंकि बौद्धिक ज्ञान को लिखित रूप न मिल पाता तथा प्रचार-प्रसार असम्भव हो जाता।
अब हम पेन के आविष्कार की बात करना चाहेंगे, कि कैसे पेन अस्तित्व में आया।
यह कहावत सब ने सुनी होगी कि “आवश्यकता आविष्कार की जननी है” अर्थात् जब इन्सान को कहीं भी असुविधा होती है तो उससे निकलने के लिए वह कोइ न कोई नई युक्ति खोज ही लेता है। इसी से सम्बंधित विषय पर आज हम चर्चा करना चाहेंगे।
लेखन का कार्य तो प्राचीन समय से चलता आ रहा है। हजारों साल पहले भी लेखन कार्य किया जाता था, परन्तु तब लेखन हेतु पेन उपलब्ध नही होते थे। उस समय में दीवारों पर नुकीले पत्थरों की सहायता से कुरेद कर लिखित में संकेत दिए जाते थे। इसके अतिरिक्त लड़की को नुकीला बनाकर या पंखों की बारीक डंडी से लेखन कार्य किया जाता था। बाद में समय बीतने के साथ-साथ शिक्षा के स्तर में भी विकास हुआ तथा विज्ञान में भी धीरे-धीरे तरक्की होने लगी। बहुत से कुशल बौद्धिक क्षमता वाले ज्ञानी लोग हुए, जिन्होंने समय-समय पर नए-नए आविष्कार किये। उन्हीं में से एक आविष्कार पेन का भी हुआ।
पहले हम आपको फाउन्टेन पेन के बारे में जानकारी देना चाहेंगे, तत्पश्चात बॉल पॉइन्ट पेन के बारे में व्याख्या करेंगे।
फाउन्टेन पेन की निब अत्यन्त तीखी होती है। इस पेन के भीतर स्याही डाली जाती है तथा पेन के इस्तेमाल के साथ-साथ यह स्याही कम होते होते खत्म हो जाती है तो इसमें पुनः स्याही भरी जा सकती है। यह पेन गुरुत्वाकर्षण के नियम के आधार पर कार्य करता है अर्थात् गुरुत्व बल के कारण ही इसकी स्याही नीचे की ओर आती है तथा छपती है।
पेट्रेक पौएनारु द्वारा सर्वप्रथम फाउन्टेन पेन का आविष्कार किया गया था। उनकी इस खोज के लिए फ़्रांस की सरकार ने सन् 1827 में उनके नाम इस पेन पर पेटेण्ट भी जारी किया।
फाउन्टेन पेन का आविष्कार के बाद इसमें कुछ सुधार करके “वाटरमैन पेन” का आविष्कार संयुक्त राज्य अमेरिका के लेविस ई वाटरमैन सन् 1884 में किया था।
बॉल पॉइंट पेन का आविष्कार अर्जेन्टीना के लाज़लो बीरो ने सन् 1944 में किया था। इनका जन्म 1899 में हंगरी में हुआ था तथा इनकी यहूदी पारिवारिक पृष्ठभूमि थी। जन्म से इनका नाम लेडिस्लाओ जॉस बीरो था, परन्तु बाद में लाज़लो बीरो के रूप में नाम परिवर्तित हुआ तथा इसी नाम से प्रसिद्ध हुए।
बीरो पेशे से पत्रकार थे।
आइये अब हम आपको बताते हैं कि बीरो को बॉल पेन का आविष्कार करने का विचार कैसे आया।
पत्रकार के रूप में लिखित कार्य करने के दौरान तब फाउन्टेन पेन का इस्तेमाल किया जाता था। इसमें समस्या यह थी कि कई बार लिखते लिखते इस पेन की स्याही का आवश्यकता से अधिक बहाव हो जाने के कारण तथा जल्दी न सूखने के कारण स्याही के धब्बे पड़ जाते थे तथा लिखावट खराब हो जाती थी। इस प्रकार से स्याही छूट जाने के कारण बीरो को परेशानी होने से ही बॉल पेन के विचार का जन्म हुआ।
उन्होंने ऐसा पेन बनाने के बारे में सोचा जो लिखने के साथ-साथ सूखती जाए तथा लिखावट में खराबी पैदा न होने पाये। इस प्रकार से उन्होंने पतली निब वाले पेन का आविष्कार किया, जिसमें छोटी से बॉल (गेंद) होती थी, जो लिखते वक्त घर्षण करती हुई घूमती रहती है और कागज पर छपती रहती है तथा कार्टेज से स्याही की पूर्ति करती थी।
बॉल पॉइंट पेन की निब स्टील, टंगस्टन व पीतल से ही निर्मित की हुई होती है। इटली, आयरलैंड व ब्रिटेन में तो आजतक भी बॉल पेन को “बीरो पेन” के नाम से ही जाना जाता है|
To biro sir waterman pen se kyu nahi likhate the ? Waterman pen mein kaun si kami thi ? Would you like to tell me.