वह कम्पन जो किसी माध्यम से मनुष्य के कानों तक जाए व उन्हें सुनाई दे, ध्वनि कहलाता है।
ध्वनि ऊर्जा का एक रूप है, जो कम्पन के कारण पैदा होती है तथा श्रवण इन्द्रियों तक पहुँचकर सुनाई देती है।
इसके संचरण के लिए किसी न किसी माध्यम का होना आवश्यक है। यह माध्यम केवल द्रव्य रूप में ही हो सकता है। इसी कारण ध्वनि तरंगों को यांत्रिक तरंग के रूप में जाना जाता है।
ध्वनि तरंगों के रूप में होती है। यह दो प्रकार की हो सकती है-
अनुदैघर्य तरंग– इसमें ध्वनि संचरण के माध्यम के कण समानान्तर इसकी गति की दिशा या विपरीत दिशा में जाते है तथा कम्पन से ध्वनि पैदा करते हैं। ऐसी ध्वनि तरंगों को अनुदैघर्य तरंगें कहते हैं। द्रव, गैस व प्लाज्मा आदि द्रव्यों में ध्वनि अनुदैघर्य तरंग के रूप में संचारित होती है।
अनुप्रस्थ तरंग– इसमें ध्वनि संचरण के माध्यम के कण इसकी गति की दिशा या विपरीत दिशा में न जाकर लम्बवत होकर कम्पन करके ध्वनि पैदा करते हैं। ऐसी ध्वनि तरंगों को अनुप्रस्थ तरंगें कहते हैं। ठोस पदार्थ में ध्वनि अनुप्रस्थ तरंग के रूप में संचारित होती है।
ध्वनि कैसे उत्पन्न होती है?
जब किसी कम्पन युक्त वस्तु में कम्पन पैदा होता है, तो उससे निकलने वाली तरंगें पहले हवा में विद्यमान कणों को आगे धकेलती हैं, जिससे हवा दाब बढ़ता है, यह क्रिया संपीड़न कहलाती है।
संपीड़न के बाद वह हवा के कणों को पुनः कम हवा दाब वाले क्षेत्र में विपरीत दिशा में पीछे की ओर धकेलती है, यह क्रिया विरलन कहलाती है। अतः संपीड़न व विरलन से ध्वनि तरंगों का निर्माण व संचरण होता है। इससे ध्वनि उत्पन्न होती है तथा संचारित होती हुई कानों को सुनाई देती है।
प्रतिध्वनि- जब कोई ध्वनि तरंग आगे संचारित होती हुई आगे किसी द्रव्य से टकराकर पुनः मूल स्त्रोत के पास लौट आती है, तो इसे प्रतिध्वनि कहा जाता है।
मनुष्य एक सीमित आवृति की ध्वनि को ही सुनने की क्षमता रखता है। यह आवृति है- 20 हर्ट्ज़ से 20 किलोहर्ट्ज़। मनुष्य के अतिरिक्त कई अन्य जीव इससे काफी अधिक आवृति वाली ध्वनि को सुनने की भी क्षमता रखते हैं। अत्यधिक तेज आवाज ध्वनि मनुष्य एवं जानवर दोनों के कानो के लिए हानिकारक साबित हो सकती है|
आवृति के अनुसार ध्वनि भिन्न-भिन्न रूपों में हो सकती है, जो निम्नलिखित है-
अपश्रव्य– 20 हर्ट्ज़ से निम्न आवृति की ध्वनि अपश्रव्य की श्रेणी में आती है। इसे मनुष्य के कान नही सुन सकते न ही इसे सुनने का प्रयत्न किया जाना चाहिए।
श्रव्य– 20 हर्ट्ज़ से 20 किलोहर्ट्ज़ आवृति वाली ध्वनि श्रव्य होती है, जिसे मनुष्य द्वारा सुना जा सकता है।
पराश्रव्य– 20 किलोहर्ट्ज़ से अधिक आवृति वाली ध्वनि अत्यधिक उच्च तरंगों से युक्त होती है तथा यह भी मनुष्य द्वारा नही सुनी जा सकती।
अतिध्वनिक– 1 गीगाहर्ट्ज़ से अधिक आवृति वाली ध्वनि तरंगें अतिध्वनिक कहलाती है।
यह आंशिक रूप से पैदा होती है।
ध्वनि से सम्बन्धित अन्य कुछ महत्वपूर्ण बिन्दु निम्नलिखित हैं-
तरंगदैघर्य– एक ही क्रम में आने वाले दो संपीड़नो या दो विरलनो के मध्य पाई जाने वाली दूरी को तरंगदैघर्य कहते हैं।
आवृति– किसीद्रव्य से एक ही समय में उत्पन्न होने वाले कम्पनों की कुल संख्या ही ध्वनि तरंगों की आवृति कहलाती है।
आवर्तकाल– एक कम्पन से दूसरे कम्पन उत्पन्न होने के लिए पहले कम्पन का पूरा होना आवश्यक है, जिसमें कुछ समय लगता है। अतः एक कम्पन को पूरा करने में जो समय लगता है, उसे ही आवर्तकाल कहते हैं।
आयाम– ध्वनि तरंगों के संचरण के माध्यम के कणों में जिस बिन्दु पर सबसे अधिक कम्पन पैदा होता है, वह आयाम कहलाता है|
ध्वनि के अनेकों रूप हो सकते है, जिसमे से कुछ प्रीतिकर होते है एवं अन्य नुकसान पहुचाने वाले, अत: स्वविवेक अनिवार्य है|
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