पानी बेस्वाद और बेरंग होते हुए भी काफी रहस्यात्मक शोध का कारण बनती है। इसमें से सोचने की बात यह भी है कि किसी भी पात्र या पतीले में पानी भरने की आवाज समय के साथ बदलती क्यूँ जाती है। यह पानी की धारा पर भी निर्भर करता है कि वह किस प्रवाह से पात्र को भर रही है, पर गौर से देखें तो, पानी की धार का, पात्र में भरते पानी की सतह पर पड़ने से यह आवाज होती है। पात्र कितना गहरा या छिछला है , इससे भी पानी भरने की आवाज तेज अथवा धीमी होती जाती है क्यूंकि पानी की गिरती धार सीधे पात्र की सतह पर गिरती है। ये आवाज वायु के कंपन से होती है।
जैसे जैसे पात्र भरता जाता है, वायु की जगह पानी ले लेती है, और ध्वनि बनाने में जो वायु कंपन होता है वो धीरे धीरे कम होने लगता है। नतीजतन हम आवाज के वेग में स्थिरता पाते है। खाली पात्र में पानी भरने की तीव्र आवाज से अधभरे पात्र की मद्धिम आवाज से भरते पात्र की धीमी आवाज में पूरा विज्ञान जल तरंगों और वायु कंपन का है। इसमें पात्र का आयतन माप भी अहम भूमिका निभाता है। गहरे और बड़े आयात के पात्र में फैलाव होता है जिससे वायुकण विस्तृत होते है और आवाज तेज सुनाई देती है। एक तरीके से कहा जाए तो आवाज पानी की नहीं, आवाज वायु की ही होती है पर अंदरूनी प्रक्रिया से अनभिज्ञ ऐसा प्रतीत होता है कि आवाज पानी की है।
सतह का तनाव पानी की धारा के मोटे और पतले होने से आवाज को क्रमशः तेज और धीमी करती है। इसीलिए पानी भरने की आवाज के पीछे वैज्ञानिक कारण विशेष कर वायु कंपन है पर उपर संबोधित किए अतिरिक्त कारण भी आवाज पैदा करने में सहायक माने जाते है।
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