आयतन की निश्चितता- सभी पदार्थ कोई न कोई जगह अवश्य ही लेते है। उस जगह का माप ही आयतन कहलाता है।
यह समझना सरल ही है कि कोई भी द्रव एक निश्चित स्थान घेरता ही है। इसीलिए इसमें निश्चित आयतन का गुण विद्यमान होता है।
घनत्व की निश्चितता- प्रत्येक द्रव्य (पदार्थ) में द्रव्यमान पाया जाता है। एक द्रव्य के आयतन के एक इकाई हिस्से में पाया जाने वाला द्रव्यमान ही उसका घनत्व कहलाता है। यह द्रव पदार्थ की सघनता को दर्शाता है।
अनिश्चित आकृति- द्रव पदार्थ के आयतन व घनत्व का एक निश्चित मान होता है, परन्तु इसका आकार निर्धारित नही होता है। द्रव जिस आकार के ढाँचे में रहता है, उसी का आकार ले लेता है।
सीमित आकर्षण बल- द्रव (तरल) के अणुओं की दूरस्थता के कारण इनके मध्य खाली जगह होती है। कणों के नज़दीक न होने के कारण ये एक दूसरे को अधिक आकर्षित नही करते हैं अर्थात् द्रव के अणुओं आकर्षण बल कमजोर होता है।
गतिशीलता- द्रव पदार्थ के कण एक दूसरे से कुछ दूरी पर स्थित रहते हैं। इस दूरी के कारण कणों के मध्य खाली जगह बनी रहती है, जिससे इन्हें एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाने के लिए रास्ता मिल जाता है तथा ये कण गति करते रहते हैं। द्रव में गतिशीलता व लोचशीलता का गुण पाया जाता है।
बहाव- द्रव के कणों में गति व लोच पाये जाने के कारण इसमें अस्थिरता बनी रहती है। यह एक स्थान पर मजबूती लिए हुए नही बना रह सकता, जिससे इसमें प्रवाहित होने का गुण भी पैदा होता है। जैसे नहरों,नदियों, नालियों आदि में जल बहता हुआ आगे जाता रहता है। यदि द्रव को किसी बर्तन (पात्र) में रखा जाए तो इसे प्रवाहित होने के लिए पर्याप्त स्थान नही मिल पाता, जिससे यह उस पात्र की सतह से टकराता रहता है।
असंपीड़न- द्रव में लोच व गति होने के कारण इसमें संपीड़न का अभाव पाया जाता है। जब किसी द्रव पदार्थ पर बाहरी दबाव बनाया जाता है तो इनके अणु नज़दीक नही आते है, जिससे ये दबते व सिकुड़ते नहीं है। इस प्रकार कहा जा सकता है कि द्रव पदार्थों में सिकुड़न पैदा नही की जा सकती, क्योंकि ये असंपीड़ित प्रकृति के होते हैं।
श्यानता- द्रव पदार्थों के प्रवाह (बहने) होने की गति में होने वाले विरोधाभास (प्रतिरोध) को श्यानता कहते हैं। किसी द्रव को प्रवाहित होते हुए आगे बढ़ने में बल का प्रयोग करना पड़ता है। घर्षण बल लगता है। उदाहरण के लिए, यदि किसी सपाट वस्तु पर पानी गिराया जाए तो वह गति करता हुआ फिसलने लगता है और यदि कोई गाढ़ा द्रव जैसे शहद गिराया जाये तो वह धीरे-धीरे फिसलता है। पानी में शहद की अपेक्षा काम विरोधाभास होगा। इस प्रकार कहा जा सकता है कि पानी में श्यानता कम पाई जाती है व गाढ़े द्रव में श्यानता अधिक पाई जाती है।
वाष्प दाब- यह गुण द्रव में पाया जाता है। जब किसी द्रव को गर्म करके ऊर्जावान बनाया जाता है और गर्म द्रव को किसी बर्तन में रखकर ढक दिया जाता है तो इसमें से वाष्प के कण निकलते है। यह वाष्पीकरण है।
ढके होने के कारण वाष्प उड़ नही पाती तथा सतह से टकराते हुए गतिशील अणु पुनः पानी बनकर जल में गिरते है। यह क्रिया संघनन कहलाती है।
इस प्रकार निरन्तर होती वाष्पीकरण व संघनन की क्रिया बराबर चलने लगती है अर्थात् साम्यता आ जाती है।
पृष्ठ तनाव- द्रव में कई प्रकार के अणु पाये जाते हैं। जब इसमें पाये जाने वाले एक ही प्रवृति वाले अणुओं के मध्य लगने वाले बल के कारण द्रव के पृष्ठ भाग(क्षेत्रफल) में सिकुड़न या तनाव पैदा होने लगता है। इस बल को ससंजक बल कहते है तथा इससे होने वाली सिकुड़न को पृष्ठ तनाव कहते है। साबुन के पानी में बनने वाले बुलबुले पृष्ठ तनाव का उदाहरण है।
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