जैव प्रौद्योगीकी या बायोटेक्नोलॉजी, विज्ञानं के विस्तृत क्षेत्र का एक महत्वपूर्ण अंग है| पिछले कई वर्षों में जैव प्रौद्योगीकी ने विकास के चरम शीर्षों को छुआ है तथा इसका मुख्य उदेश्य मानव जाति को सब तरफ से लाभ पहुचाना एवं राष्ट्र के विकास एवं उन्नति में योगदान करना है|
प्रौद्योगीकी का साधारण अर्थ तकनीक या आभियांत्रिकी से है, जिसके अंतर्गत जीवों के जीवन से सम्बन्धित डाटा या जानकारी एकत्रित की जाती है एवं उनसे जुडी हुई समस्याओं को समझने एवं सुलझाने का प्रयास किया जाता है|
सम्पूर्ण विश्व में इस विषय के सहज एवं गहन अध्ययन हेतु निकाय उपलब्ध होते है, किन्तु जिन संस्थानों में ये अलग से नहीं होते वहा इस विषय को जीव विज्ञानं अथवा रासायनिक अभियांत्रिकी विभाग में रखा जाता है|
जैव प्रौद्योगीकी के प्रमुख खोज के क्षेत्र:
जैव प्रौद्योगीकी के मुख्य रूप से अनुसन्धान या वैज्ञानिक खोज के अंतर्गत तीन क्षेत्र निर्धारित किये गये है, जो इस प्रकार है;-
प्रथम क्षेत्र में सूक्ष्म जीवो द्वारा उत्प्रेरक को निर्मित करना, जैव प्रौद्योगीकी के क्षेत्र में आता है|
दूसरे क्षेत्र के अंतर्गत उत्तम तकनीक द्वारा श्रेष्ट परिस्थितियों का निर्माण करना, जिससे जीव मात्र का भला हो सके|
तीसरे क्षेत्र के अंतर्गत, विभिन्न तकनीको द्वारा प्रोटीन अथवा कार्बनिक यौगिक को शुद्ध करके उसे प्रयोग में लाना सम्मिलित है|
जैव प्रौद्योगीकी का उपयोग:
आधुनिक युग में जैव प्रौद्योगीकी का प्रयोग कृषि, चिकित्सा, पर्यावरण को लाभ पहुचाना, देश का विकास एवं मानव के लिए आवश्यक उत्पादों का निर्माण करना आदि में किया जाता है| यह मानव एवं पर्यावरण के साथ-साथ प्रकृति में मौजूद सूक्ष्म जीवों के लिए भी लाभकारी है| इसके द्वारा प्रदुषण को कम करके पारिस्थितकी तन्त्र में संतुलन एवं व्यवस्था कायम की जा सकती है| जैव प्रौद्योगीकी का उपयोग विभिन्न क्षेत्रो में किस प्रकार किया जाता है, उसका विस्तृत वर्णन इस प्रकार है:-
कृषि के क्षेत्र में जैव प्रौद्योगीकी:
खाद्य उत्पादन हेतु एवं बढती जनसंख्या की आपूर्ति हेतु तीन प्रकार से कृषि में बढ़ोतरी की जा सकती है, जैसे: रसायन के आधार पर कृषि करके, कार्बनिक खेती द्वारा एवं पूर्णत: फसल आधारित कृषि द्वारा|
हालांकि हरित क्रांति ने खाद्य उत्पाद की वृद्धि में महत्वपूर्ण योगदान दिया है किन्तु जनसंख्या में तीव्रता से होती बढ़ोतरी उत्पादन की मांग को बढ़ा रही है| अत: कोई ऐसा तरीका या उपाय किया जाना अनिवार्य है जिससे इस समस्या का समाधान किया जा सके|
इसके अंतर्गत जैव प्रौद्योगीकी द्वारा इसे पादप, बैक्टीरिया, कवक आदि के जीनोम में परिवर्तन किये गये है, जिनसे लम्बे समय तक जीवित रहने वाली फसलों का निर्माण किया जा सके| महंगे रासायनिक कीटनाशको की जरूरत कम से कम पड़े एवं फसल की कटाई के बाद होने वाली हानि को कम करने में सहायता हो|
इसके साथ ही खाद्य उत्पादों की उर्वरता में अधिक से अधिक वृद्धि हो करना आदि बाते जैव प्रौद्योगीकी के कृषि के उपयोग के अंतर्गत आती है| इसके साथ ही क्षेत्रों में इसे पौधो को उगाना जो प्राक्रतिक पीडकनाशक एवं कीटनाशक का कार्य करने में सक्षम हो|
चिकित्सा के क्षेत्र में जैव प्रौद्योगीकी:
चिकित्सा के क्षेत्र के अंतर्गत जैव प्रौद्योगीकी द्वारा ऐसी औष्धियो का निर्माण करने का विचार है जिसमे जटिल रोगों का जड़ समेत निदान किया जा सके| जिस प्रकार मधुमेह से ग्रसित व्यक्तियों को इन्सुलिन लेना अत्यंत अनिवार्य होता है, किन्तु इस इन्सुलिन को पहले जानवरों द्वारा प्राप्त किया जाता था, जिस से कुछ मनुष्यों में इसकी प्रतिक्रिया देखी गई| अत: आर. डी.एन.ए. की तकनीक का प्रयोग करके इन्सुलिन उत्पादन किया जा सकता है, किन्तु इससे कुछ चुनोतिया भी जुडी हुई है|
जीन चिकित्सा:
बहुत सारे व्यक्ति आनुवंशिक रोगों के साथ पैदा होते है अत: इसे व्यक्तियों के इलाज के लिए जीन चिकित्सा प्रणाली सबसे कारगर एवं प्रभावी माध्यम है एवं जैव प्रौद्योगीकी ने इसमें अहम भूमिका अदा की है| इसके अंतर्गत इस प्रकार के रोग से ग्रसित शिशु का गर्भ में पता लगाकर उसमे सुधार की प्रक्रिया शुरू की जाती है|
इसमें जीन्स को ग्रसित व्यक्ति के उत्तको में प्रवेश करवाया जाता है| जीन प्रणाली का सर्वप्रथम प्रयोग 1990 ई. एडीए रोग के उपचार हेतु में किया गया था| जीन चिकित्सा द्वारा कोशिका में रूपांतरण करके सक्रिय एडीए का प्रवेश करवाया जाता है|
जीन चिकित्सा प्रणाली के अंतर्गत रोगी के खून से लसिका अणु को शरीर से बाहर निकला जाता है, इस लसिका अणु में सक्रिय अणु या एडीए के साथ मिलाकर पुन: शरीर में डाला जाता है| इस प्रक्रिया पर अभी भी शोध कार्य जारी है क्योकि यह इलाज पूरी तरह से रोग का नाश नहीं करता|
आणविक इलाज:
रोग का पूरा इलाज करने के लिए उस रोग के सम्बन्ध में सभी कारणों व प्रभावों का पता लगाया जाना आवश्यक है| कारण ज्ञात होने पर ही निवारण किया जा सकता है| जैव प्रौद्योगीकी के द्वारा जटिल रोगों के लक्षण ज्ञात होने पर उनका समय पर निदान किया जा सकता है अन्यथा लक्षणों के बढने एवं रोग के विकराल रूप धारण कर लेने पर इलाज करना असम्भव प्रतीत होता है|
भारत में जैव प्रौद्योगीकी विभाग:
भारत देश में जैव प्रौद्योगीकी विभाग की स्थापना सम्बन्धित कार्यक्रमों एवं योजनाओं के सुनियोजित क्रियान्वन एवं समन्वय हेतु की गयी थी| जैव प्रौद्योगीकी अथवा डी.बी.टी. विभाग, विज्ञानं और प्रौद्योगीकी मंत्रालय के अंतर्गत आता है|
इस विभाग का प्रमुख कार्य देश में स्थापित अनुसंधान शालाओ का सुचारू रूप से क्रियान्वयन, विश्वविद्यालय एवं जैव प्रौद्योगीकी से सम्बन्धित प्रयोग शालाओं के अनुदान आदि की व्यवस्था करना आदि सम्मिलित है| इसके साथ ही जैव प्रौद्योगीकी निकाय के मुख्य कार्य एवं जिम्मेदारियां इस प्रकार है:-
# जैव प्रौद्योगीकी का अधिक से अधिक प्रयोग करने हेतु एवं इसके सदुपयोग को प्रोत्साहन देना|
# जैव प्रौद्योगीकी से जुड़े हुए सभी क्षेत्रों एवं प्रयोगशालाओ के विकास के लिए विभिन्न केन्द्रों की स्थापना करना|
# अनुसन्धान एवं जैव प्रौद्योगीकी के विचार को आगे बढ़ाने हेतु मूल सुविधाओ को उपलब्ध करवाना|
# जैव प्रौद्योगीकी से सम्बन्धित उत्पादों के आयात हेतु सरकार के साथ मिलकर इसके कार्यकर्ता के रूप में कार्य करना|
# विभिन्न अनुप्रयोगों एवं खोज आदि के लिए दिशा-निर्देश जारी करना एवं उनके देश में लागू होने के लिए सहयोग करना|
# मानव संसाधन एवं विकास से सम्बन्धित कार्यक्रमों के लिए पहल करना|
# जैव प्रौद्योगीकी के क्षेत्र को विकसित करने के लिए अंतर्राष्ट्रीय सहयोग प्राप्त करने की चेष्टा करना|
# जैव प्रौद्योगीकी के लिए नोडल एजेंसी के समान कार्य करना जिससे सूचनाओं का भली प्रकार से प्रचार व् प्रसार किया जा सके|
राष्ट्रीय जैव प्रौद्योगीकी एवं विकास नीति की स्थापना:
पिछले कुछ वर्षों से सरकार एवं वैज्ञानिको द्वारा जैव प्रौद्योगीकी के क्षेत्र में अद्भुत एवं सकारात्मक परिणाम सामने आये है जिसे मद्दे नजर रखते हुए सरकार ने वर्ष 2007 से राष्ट्रीय जैव प्रौद्योगीकी एवं विकास नीति को पूर्ण रूप से अपनी स्वीकृति प्रदान की है|
यह नीति सरकार ने जैव प्रौद्योगीकी से सम्बन्धित मंत्रालय, विभिन्न विभागों एवं गैर-सरकारी एवं सरकारी संघटनो के साथ करीब २ वर्ष तक गहन मनन एवं विमर्श करने के बाद जारी की है|
इस योजना का मुख्य उद्देश्य जैव प्रौद्योगीकी से जुड़े हुए हर प्रकार के विकास एवं परिणामो का ब्यौरा रखना, अंतर्राष्ट्रीय क्षेत्र में जैव प्रौद्योगीकी की भागीदारी को बढ़ावा देना, अन्य देशो में इससे सम्बन्धित जानकारी को फ़ैलाने हेतु अनुवाद की सहायता लेना, जैव प्रौद्योगीकी क्षेत्र के अंतर्गत अनेक छात्रवृत्तियां एवं उच्च स्तर पर पी.एच.डी. एवं शोध कार्यों की नीव रखना एवं उनका क्रियानावंन करना, चिकित्सा, कृषि एवं अन्य क्षेत्रो के विकास हेतु नयी संस्थाओं की स्थापना करना एवं समय-समय पर उनमे बदलाव करना, जैव प्रौद्योगीकी से होने वाली आय का कुछ प्रतिशत भाग कार्यक्रमों के चालन हेतु सुरक्षित रखना आदि मुख्य बाते सम्मिलित की गई है|
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