जनन ईश्वर द्वारा प्रदत्त ऐसा उपहार है, जिससे धरती पर सजीवों का अस्तित्व कायम रह सके। जन्तुओं द्वारा अपना अस्तित्व बनाये रखने के लिए व अपनी प्रजाति का विकास करने के लिए जनन क्रिया अपनाई जाती है।
जन्तुओं की उत्पत्ति जन्तुओं से ही होती है। जन्तुओं द्वारा संतानोत्पत्ति के लिए जनन के दो तरीके होते हैं- (1)अलैंगिक जनन (2) लैंगिक जनन।
अलैंगिक जनन
जब एक जनक की कोशिका के द्वारा या जन्तु शरीर के किसी हिस्से से नए जीव की उत्पत्ति होती है, तो ऐसा जनन अलैंगिक जनन कहलाता है। विशिष्ट कायिक संरचना से जन्तु की उत्पत्ति होती है। इसमें नर व मादा युग्मक का योगदान नही होता है।
जन्तुओं में अलैंगिक जनन चार तरह से हो सकता है-
मुकुलन- कुछ जीवों की कोशिकाओं में ऐसी क्षमता पाई जाती है, जिससे उनके शरीर पर नई जीवोत्पत्ति होती है। जनक जीव के शरीर के बाह्य भाग पर कलिका समान संरचना पैदा होने लगती है। इस संरचना को मुकुल कहते है| यह विकास करते हुए नए जीव का रूप लेती है| उचित समय पर यह जनक जीव से अलग हो जाती है। इस प्रकार मुकुल से नए जीव के जन्म की पूरी क्रिया को मुकुलन कहते हैं। “हाइड्रा” में मुकुलन होता है।
बहुखण्डन- इसमें सर्वप्रथम जीव में कोशिका के केन्द्रक में विभाजन होता है, जिससे कई पुत्री कोशिकाओं का निर्माण होता है। इसके पश्चात् कोशिकाद्रव्य में विभाजन होता है तथा केन्द्रक के चारों ओर कोशिकाद्रव्य एकत्रित होता है, जिससे जीव में नये जीव का निर्माण प्रारम्भ होता है। विभाजन एक से अधिक बार होता है, इसलिए इसे बहुखण्डन कहते हैं। प्लाज्मोडियम में बहुखण्डन से जनन द्वारा संतानोत्पत्ति होती है।
द्विखंडन- जैसा कि नाम से स्पष्ट है- “द्वि” अर्थात् दो और “खण्डन” अर्थात् विभक्त होना। इसमें कोशिका दो भागों में बंट जाती है। एकल कोशिका वाले जन्तुओं में कोशिका का विभाजन हो जाता है। द्विखण्डन में जीव दो समान आकृतियों में बंट जाता है। द्विखण्डन की प्रकृति भिन्न-भिन्न होती है, जैसे अमीबा में अनियमित द्विखण्डन, युग्लीना में लम्बवत् व पैरामिशियम में पाश्र्विय द्विखण्डन होता है।
पुनरुद्भवन- जीवों द्वारा पुनर्निर्माण की क्रिया करते हुए नए जीव की उत्पत्ति करना पुनरुद्भवन कहलाता है। प्रकृति में कुछ ऐसे जीव-जन्तु पाये जाते है, जिनमे स्वयं कायिक विभाजन करके नए जीवों का निर्माण करने की अद्भुत सामर्थ्य होती है। इस प्रक्रिया में जीव कुछ भागों में खण्डित हो जाता है तथा प्रत्येक विभाजित हुआ खण्ड धीरे-धीरे विकास कर नए जीव का रूप ले लेता है। प्लेनेरिया व तारामछली में पुनरुद्भवन द्वारा नए जीवों की उत्पत्ति की जाती है।
लैंगिक जनन
नई सन्तान की उत्पत्ति के लिए दो जीवों का योगदान आवश्यक होता है, क्योंकि इसमें नर व मादा युग्मकों के मिलने से नया जीव अस्तित्व में आता है। नर व मादा जननांगों से जनन क्रिया के माध्यम से नर युग्मक(शुक्राणु) का मेल मादा युग्मक(अण्डाणु) से होता है। यह अलैंगिक जनन से विपरित है। लैंगिक जनन कशेरुकी व उच्च अकशेरुकी जन्तुओं में होता है।
लैंगिक जनन के आधार पर जीवोत्पत्ति करने वाले जन्तुओं में भी भिन्नता पाई जाती है। वे हैं- 1.एकलिंगी जन्तु 2.उभयलिंगी जन्तु।
एकलिंगी– ऐसे जन्तुओं में युग्मक निर्माण हेतु केवल एक जनन अंग पाया जाता है।
शुक्राणु(नर युग्मक) निर्माण नर में तथा अण्डाणु(मादा युग्मक) निर्माण मादा में होता है। इनमें स्वनिषेचन नहीं हो सकता क्योंकि शुक्राणु व अण्डाणु का निर्माण अलग-अलग शरीर में होता है। शुक्राणु के अण्डाणु से मेल होने पर मादा में अंडे निषेचित होते है तथा भ्रूण निर्माण होता है। यह भ्रूण विकसित होते होते पूर्णतः नए जन्तु का रूप में जन्म लेता है।
उभयलिंगी– जब नर युग्मक व मादा युग्मक का निर्माण एक ही जीव में होता है, तो ऐसे जीव उभयलिंगी या द्विलिंगी कहलाते हैं। ऐसे जन्तुओं में पाये जाने वाले जननांगों से एक ही शरीर में दोनों युग्मक (शुक्राणु व अण्डाणु) उत्पन्न होते हैं। इनमें स्वनिषेचन पाया जाता है। निषेचन से नई जीवोत्पत्ति होती है।
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