श्वसन तन्त्र मनुष्य के जीवित रहने के लिए अत्यंत महवपूर्ण प्रणाली है| श्वसन प्रणाली का सबसे जरूरी और प्राथमिक अंग फेफड़े होते है, जहाँ पर सभी प्रकार की गैसों का आदान-प्रदान किया जाता है, इसी कारणवश इसे फुफ्फुसीय श्वसन तन्त्र भी कहा जाता है|
श्वसन तन्त्र के अंतर्गत नासा मार्ग, स्वरयंत्र, ट्रेकिया, ग्रसनी, ब्रोकाई, फेफड़े एवं ब्रोंकियोल्स आदि सम्मिलित किये गये है| इन सभी अंगो से वायु एवं गैसों का आदान-प्रदान होता है| इन सभी अंगो का संक्षिप्त विवरण इस प्रकार है:-
नासामार्ग:
यह श्वसन का द्वार भी कहा जाता है, जो श्वसन के साथ-साथ सूंघने का कार्य भी करता है| इसके अंदर की गुहा एक दिन में लगभग १/२ ली. म्यूक्स का स्त्रावण करती है, जो शरीर के अंदर नासापुटो द्वारा प्रविष्ट होने वाले जीवाणुओं या अन्य हानिकारक सूक्ष्म जीवों को अंदर जाने से रोकता है| नासमार्ग का दूसरा महत्वपूर्ण कार्य शरीर के अंदर जाने वाली श्वास को सही ताप देना एवं नमी प्रदान करना है|
ट्रेकिया:
ट्रेकिया की दो प्रमुख शाखाये होती है जिसे ब्रोंकियोल कहा जाता है| इसमें दाये ब्रोंकियोल की तीन शाखाये होती है, जो दाई ओर के फेफड़ो में जाती है एवं बाए ब्रोंकियोल में दो शाखाये होती है जो बाए ओर के फेफड़ो में प्रवेश करती है|
ग्रसनी:
यह नाक की गुहा के पीछे स्थित रहती है|
फेफड़ा:
फेफड़ो की रचना स्पंज के जैसे होती है एवं ये लाल रंग के होते है| बाया फेफड़ा दाये की तुलना में छोटा होता है| ये वक्ष गुफा में एक जोड़ी के रूप में पाए जाते है| प्रत्येक फेफड़ा प्लूरल मेम्ब्रेन से घिरा रहता है, जो की एक प्रकार की झिल्ली होती है| फेफड़ो के द्वारा O2 रक्त में प्रवेश कर जाती है और CO2 बाहर निकाल दी जाती है|
स्वर यंत्र या लेरिक्स:
यह ग्रसनी को ट्रेकिया से जोड़ने का कार्य करता है एवं यह श्वसन मार्ग का मह्त्वपूर्ण अंग है, जो ध्वनि पैदा करने का कार्य करता है| यह भोजन को श्वसन नली में जाने से भी रोकता है|
श्वसन की सम्पूर्ण प्रक्रिया को 4 भागो में विभाजित किया गया है, जो इस प्रकार है:-
बाह्य श्वसन:
श्वसन की यह प्रक्रिया दो भागो में होती है, श्वास लेना या श्वासोच्छवास एवं गैसों का विनिमय|
श्वास लेना या श्वासोच्छवास:
फेफड़े जब निश्चित हिसाब से वायु ग्रहण करते है एवं बाहर निकलते है, तो इसे श्वास लेना या श्वासोच्छवास कहा जाता है| इसमें विभिन्न प्रकार की प्रक्रियाए शामिल है, जैसे, निश्व्सन, उच्छश्वसन आदि|
गैसों का विनिमय:
इसके अंतर्गत फेफड़ो में विभिन्न गैसों का विनिमय उनके दाब के आधार पर होता है|
गैसों का परिवहन:
गैसों जैसे CO2 व् O2 आदि का फेफड़ो के माध्यम द्वारा शरीर के विभिन्न भागो तक जाना एवं वापस आने की प्रक्रिया को गैसों का परिवहन कहा जाता है| इसमें आक्सीजन परिवहन रक्त में उपस्थित हीमोग्लोबिन के कारण होता है तथा CO2 का परिवहन भी हीमोग्लोबिन के द्वारा २०% तक ही हो पाता है|
आन्तरिक श्वसन:
उत्तक एवं रक्त के मध्य होने वाले गैसीय विनिमय को आन्तरिक श्वसन कहा जाता है| यहाँ यह ध्यान रखने योग्य है कि, फेफड़ो में जब गैसीय विनिमय हो तो उसे बाह्य श्वसन की प्रक्रिया कहा जाता है|
कोशिकीय श्वसन:
खाद्य पदार्थो से मिलने वाले ग्लूकोज का कोशिका में आक्सीकरण करने की प्रक्रिया को कोशिकीय श्वसन कहते है| यह २ प्रकार का होता है:-
१. अनाक्सी श्वसन:
यह श्वसन ओक्सिजन की अनुपस्थिती में पूर्ण होता है, जिसकी प्रकिया को ग्लाइकोलिसिस कहा जाता है| यह जीवाणु व् यीस्ट में अधिकतर पाया जाता है, इस प्रक्रिया के आखिर में पाइरुविक एसिड बनता है|
२. ऑक्सी श्वसन:
यह ऑक्सिजन की उपस्थिति में होने वाली प्रक्रिया है, जिससे काफी मात्रा में ऊर्जा निकलती है| इस प्रक्रिया का अध्ययन सबसे पहले एम्बडेंन मेयरहाफ एवं परसन ने किया था|
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