तारामंडल आसमान में दिखने वाले तारों के समूह को कहा जाता है, जो पृथ्वी से देखने पर एक साथ समूह में दिखाई पड़ते है, तथा अलग-अलग सभ्यताओं के लोगों ने तारों के मध्य विभिन्न आकृतियाँ बनाकर उन्हें विभिन्न नाम दिए| तारों को नक्षत्र भी कहा जाता है, प्राचीनकाल में मृगशीर्ष नामक तारामंडल का नाम सामने आया, इसके साथ ही वृहत सप्तऋषि मंडल, लघु सप्तऋषि मंडल, हाईड्रा, एवं सिग्नस आदि प्रमुख तारामंडल माने जाते है|
सबसे विशाल तारामंडल सेनटारस को माना गया है, जिसमे ९४ तारे शामिल है, इसी प्रकार हाईड्रा में ६८ तारे शामिल है| एक तारामंडल का दुसरे तारामंडल से काफी फासला होता है, भले ही पृथ्वी से देखने पर वे समीप प्रतीत होते हो| वृहत सप्तऋषि एवं लघु सप्तऋषि मंडल में सात चमकीले तारे विद्यमान है, जो अलग-अलग ऋतुओ में चमकते हुए नजर आते है|
तारा
तारा ब्रह्मांड में उपस्थित खगोलीय पिंड को कहा जाता है, जो निरंतर ऊष्मा एवं प्रकाश का उत्सर्जन करते रहते है, जैसे, सूर्य को भी एक तारा कहा जा सकता है| तारों को उनके आकार, रंग, ताप एवं चमक के अनुसार विभाजित किया जाता है|
मुख्य रूप से तारे ३ रंगो के होते है, लाल, श्वेत एवं नीला| तारो की चमक एवं उनका रंग उनके ताप के आधार पर निर्भर करता है, जैसे सबसे उच्च ताप वाले तारे का रंग नीला होता है, जबकि कम ताप वाले तारे का रंग लाल होता है, मध्यम ताप वाले तारे का रंग श्वेत होता है|
चूँकि पृथ्वी अपने अक्ष पर पश्चिम से पूर्व की तरफ घुमती है, अत: तारे रात्रि के समय विपरीत दिशा यानी कि पूर्व से पश्चिम के और घूमते हुए प्रतीत होते है, केवल ध्रुव तारा स्थिर प्रतीत होता है, क्योकि यह पृथ्वी के अक्ष पर उपस्थित रहता है| ध्रुव तारा लिटिल बियर तारामंडल का महत्वपूर्ण सदस्य है|
तारों का जन्म एवं विकास चक्र
तारे के जन्म के लिए मुख्य रूप से हीलियम एवं हाइड्रोजन गैस का अहम् भूमिका रहती है| तारों का जन्म एवं चक्र मन्दाकिनी(अरबों खरबों तारो का विशाल समूह) में उपस्थित गैसों के समुहो के रूप में एकत्रित होने के साथ शुरू होता है|
आदि तारे का निर्माण
आदि तारा विभिन्न गैसों का ऐसा पिंड है, जो गैसो की सघनता से आरम्भ होता है, गैसों से आच्छादित इन बादलों की ऊष्मा -१७३०c होती है, और धीरे-धीरे गैस के अणुओं का आकर बढ़ाने से गुरुत्वाकर्षण के कारण ये सिकुड़ते चलते जाते है, जिससे आदि तारा का निर्माण होता है, आदि तारे में प्रकाश का उत्सर्जन नहीं होता|
तारे का निर्माण
आदि तारे के पश्चात तारे का निर्माण प्रारम्भ होता है, जिसके अंतर्गत आदि तारा लम्बे समय तक गुरुत्वाकर्षण के कारण संकुचित होता रहता है, और उच्च ताप के कारण आदि तारे में विभिन्न् प्रकार की रासायनिक अभिक्रियाए शुरू हो जाती है| इस क्रिया अभिर्किया के कारण नाभिक आपस में सलन्यित होकर बड़े नाभिको का निर्माण करते है, जिनसे बड़ी मात्रा में ताप एवं प्रकाश का उत्सर्जन होता है, हाइड्रोजन सलन्यित होकर हीलियम में परिवर्तित हो जाता है, जिससे आदि तारे को ताप मिलता है, और यही अत्यधिक ताप व् प्रकाश आगे जाकर तारा बन जाता है, साधारण दिखने वाली इस प्रक्रिया में लाखों वर्ष लग जाते है|
तारे के जीवनकाल का आखिरी चरण
अपने जीवनकाल के आखिरी चरण के शरुआती भाग में तारा लाल दानव अवस्था में होता है| इसके बाद उसका भविष्य एवं जीवन उसके द्र्वय्मान पर निर्भर करता है| यदि शुरुआती तारा का द्र्वय्मान सूर्य के द्र्वय्मान के समान होता है तो तारा अपने बाहरी आवरण को खो सकता है तथा ब्रह्मांड में नष्ट हो सकता है, किन्तु यदि द्र्वय्मान सूर्य के द्रव्यमान से अधिक हो तो तारे में विस्फोट हो जाता है, जिससे वह ब्लैक होल या न्यूट्रान तारा बन जाता है|
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