पसीना एक बिलकुल सामान्य शारीरिक प्रक्रिया है जिस पर हमे कोई संकोच नहीं होना चाहिए। पसीना एक अति महत्वपूर्ण स्वास्थ्य सम्बंधित भूमिका निभाता है। वाष्पीकरण के द्वारा पसीना हमें ठंडा रख कर शरीर के तापमान को बनाए रखने में मदद करता है। जब हम गर्मी महसूस कर रहे होते हैं तब हमारा शरीर रोम छिद्रों से पसीने का स्त्राव करता है। सैद्धांतिक रूप से, कोई भी तरल हवा में आने पर वाष्पीकृत होता है और अपने आस पास की वस्तुओं को अपेक्षकृत ठंडा कर देता है। और इसीलिए जब हम पसीना बहाते हैं, तो ये नमी वाष्पीकृत हो जाती है और हमें थोड़ी शांती का अनुभव होता है।
परन्तु केवल गर्मी ही पसीने का कारण नहीं है। जब लोग घबराते या डरते हैं, तब भी पसीने का स्राव सामान्य बात है। क्योंकि हमारे मस्तिष्क की भावनाएं भी पसीने की ग्रंथियों को प्रभावित कर सकती हैं।
युवावस्था के साथ होने वाले बदलावों में पसीने के स्त्राव की मात्रा का बदलना भी शामिल है। जब हमारे शरीर में हार्मोनल बदलाव शुरू हो जाते हैं, तो लगभग 3 करोड़ पसीने की ग्रंथियां और अधिक सक्रिय हो उठती जाती हैं। बगल, हाथों और पैरों के तलवों पर विशेष रूप से सक्रीय ये ग्रंथियां बचपन की तुलना में कहीं अधिक पसीने का स्राव करती हैं।
दुर्गन्ध से पसीने का सम्बन्ध भी एक भ्रान्ति ही कही जाये तो ठीक होगा। क्यूंकि पसीने की अपनी कोई विशिष्ट तीव्र गंध नहीं होती। पसीने की गंध तब उत्पन्न होती है जब उसमे मौजूद तत्वों को त्वचा पर मजूद बैक्टीरिया विश्लेषित करना शुरू करता है। और इन तत्वों के आधार पर ही कुछ लोगों के पसीने की दुर्गन्ध दूसरों की तुलना में अधिक तीव्र हो सकती है।
रोज़ाना स्नान करने से त्वचा पर बैक्टीरिया के जमाव को कम किया जा सकता है, और इस तरह पसीने की दुर्गन्ध को भी काफी हद तक काम किया जा सकता है। सामान्यतयः पसीने के स्राव को ही रोकना स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हो सकता है, यदि सामान्य गंध भी आपके आत्मविश्वास को ठेस पहुंचा रही हो तो, तो दुर्गन्ध दूर करनेवाले डेओड्रेंट्स और एन्टीपरस्पायरेंट्स का प्रयोग किया जा सकता है। साथ ही प्राकृतिक फाइबर से बने कपड़े पहनने से भी मदद मिल सकती है। जैसे सूती कपडे विशेष रूप से गर्मी में हवा को त्वचा तक पहुँचाने में सहायक होते हैं, जिससे पसीने के सूखने की प्रक्रिया में काफी बढ़ोतरी हो जाती है।
परन्तु अत्यधिक पसीना भी कभी कभी किसी स्वास्थ्य सम्बंधित समस्या का संकेत भी हो सकता है। इसलिए चिकत्सकीय परामर्श लेना ही सही है।
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