रेगिस्तान में पैदा होने वाले पेड़-पौधों को मरुद्भिद कहते हैं| रेगिस्तानी पौधों का वर्णन इस प्रकार हैं-
पलाश- यह वेदवर्णित पवित्र पेड़ ढाक, छूल, टेसू, परसा, केसू आदि नामों से भी जाना जाता है| इसकी लम्बी, लहराती पत्तियों वाले फूलों से पेड़ का आकर्षण बढ़ता है| इसकी प्रजातियां पेड़, झाड़ी व बेल तीन रूपों में पायी जाती है| मोटे तने वाले पेड़ के एक फूल में तीन पत्तियां होती हैं| पीले व लाल रंग के पलाश में लाल फूल वाले पेड़ साधारणतः देखने को मिल जाते हैं| सौन्दर्य प्रसाधन, औषधि के अतिरिक्त इसमें अनेक स्वास्थ्य सम्बन्धी विशेषताएं पायी जाती हैं|
बबूल- भारत में पूजनीय माना जाने वाला यह पेड़ गुणकारी होता है| मध्यम आकार के इस पेड़ की टहनियों पर पतले तिनकों पर बारीक-छोटी पत्तियां होती हैं| इसपर छोटे-छोटे पीले फूल व हरी फलियाँ लगती हैं| खेर, करील, सोनकीकर, फुलाई, रामबबूल आदि इसकी प्रजातियों के नाम हैं|
आक- बड़े व मोटे पत्तों वाला यह पेड़ छोटा और फैला हुआ होता है| छोटे व सफ़ेद रंग वाले इस पौधे को अकुआ, मन्दार भी कहा जाता है| आक के पत्तों व टहनियों से निकलने वाले दूध जैसे गाढे द्रव्य का उपयोग सीमित मात्रा में औषधि रूप में किया जाता है| परन्तु यह जहर समान होता है, जिसके अधिक सेवन से मौत हो सकती है| चिकित्सा के क्षेत्र में आक का काफी प्रयोग होता है|
झरबेला- इसे झड़बेर भी कहते हैं| झाड़ीदार इस पेड़ के पत्ते गोल होते हैं| इसपर कांटे भी पाए जाते हैं| इसपर लगने वाले बेर सामान फल खाने योग्य होते हों|
गोरख इमली- इसे “गोरखचिंच” व “बाओबाब” भी कहते है| यह मोटे तने वाला बड़ा पेड़ है, जिसमे भरपूर मात्र में अम्ल पाया जाता है, यानी स्वाद में यह खट्टा होता है| इसपर फल व फूल दोनों लगते हैं| खाने के लिए और औषधि के रूप में इसका काफी प्रयोग किया जाता है|
अमलतास- पीले फूलों वाले इस पेड़ की उंचाई अधिक नहीं होती| सर्दी में इसपर पतली फलियाँ उभरती हैं, जो काले चिपचिपे पदार्थ से युक्त होती है| इसके तनों में गोंद जैसा पदार्थ निकलता है| यह पूरा पेड़ गुणों से युक्त है, क्योंकि इसके पत्तों, शाखाओं और फलियों का उपयोग वृहत् तौर पर आयुर्वेद चिकित्सा व औषधि निर्माण में विभिन्न तरीकों से किया जाता है|
खेजड़ी- इसे “शमी वृक्ष” भी कहते हैं| कांडी, जांटी, सांगरी इसके अन्य नाम हैं| यह 8-10 मीटर तक ऊँचा होता है| स्थानीय लोग पूजा-अर्चना में खेजड़ी को पवित्र मानते हैं|
युफोर्बिया- रेगिस्तान की शुष्क मिट्टी व गर्मी में यह पौधा पूरे वर्ष जीवित रहता है| सुन्दर रंग-बिरंगे फूलों वाला पौधे का उपयोग सजावट के लिए किया जाता है| इसमें से सफेद रंग का जहरीला द्रव निकलता है| युफोर्बिया को अधिक देखभाल की आवश्यकता नही होती है| एक बार लगाने के बाद यह स्वतः पनपता रहता है| इसकी अधिकाँश प्रजातियों में पत्तियां छोटी होती हैं|
कैक्टस- कांटेदार पौधे की एक हजार से अधिक प्रजातियाँ पायी जाती हैं| ये रेगिस्तान की सूखी मिट्टी में अनुकूल रूप से पनपते हैं| यह गुद्देदार तने वाला पौधा है, जो अपने तने में पानी की थोड़ी-थोड़ी मात्रा संग्रहित कर के रखता है| कैक्टस की सबसे छोटी प्रजाति “फिशहूक कैक्टस” है, जिसकी लम्बाई लगभग 3 इंच तक होती है और कैक्टस की सबसे बड़ी प्रजाति “सैगुअरो कैक्टस” है, जो 40 फीट लम्बे हो सकते हैं| कैक्टस के सभी पौधे फूलदार नहीं होते, लेकिन कुछ प्रजातियाँ ऐसी हैं, जिनपर रंग-बिरंगे सुन्दर फूल खिलते हैं|
वोल्लेमी- 25-40 मीटर तक ऊँचे इस पेड़ की पत्तियां डेढ़ से तीन इंच तक लम्बी व सपाट होती हैं| छोटी पत्तियां गहरे हरे रंग की होती हैं, जो बड़ी होते-होते हरे रंग के साथ पीलेपन में बदलती हैं| आकार में कुछ-कुछ क्रिसमस ट्री जैसा लगता है| इन पेड़ों का जीवनकाल बहुत अधिक होता है| इसके छोटे पेड़ों को गमलों में लगाकर सजावट के लिए भी प्रयोग किया जाता है|
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