परमाणु के अभिलक्षण अर्थात गुणों को जानने के लिए हमे सबसे पहले यह जानना होगा कि प्रत्येक तत्व विभिन्न प्रकार के रासायनिक गुणों से युक्त होता है या इसे ऐसे भी कह सकते हैं कि रासायनिक गुणों की भिन्नता के आधार पर तत्वों में भी विभिन्नता पाई जाती है। किसी तत्व के इन रासायनिक गुणों का भण्डार जहाँ होता है, उसे ही परमाणु कहते हैं अथवा ये रासायनिक गुण परमाणु में ही पाये जाते हैं और यह कई अभिलक्षणों से युक्त होते हैं।
ब्रह्माण्ड में निहित सभी द्रव्य या पदार्थ या तत्व परमाणु से ही बने होते हैं। यह अत्यधिक सूक्ष्म रूप में होते हैं।
परमाणु के सम्बन्ध में प्राचीन काल से ही महान भौतिकविदों द्वारा कई अवधारणाएं प्रस्तुत की गयी।
लगभग 600 ईसा पूर्व महर्षि कणाद द्वारा सर्वप्रथम द्रव्य का निर्माण करने वाले कणों को परमाणु नाम दिया। उन्होंने कहा कि परमाणु बहुत छोटे हैं तथा इनका विभाजन किया जाना सम्भव नही हैं। ये किसी भी तत्व में अस्वतन्त्र रूप में वास करते हैं।
यूनान के प्रसिद्ध दार्शनिक डेमी क्रिट्स द्वारा लगभग 460 ईसा पूर्व कहा गया कि प्रत्येक द्रव्य का निर्माण अत्यंत छोटे व अदृश्य कणों से हुआ होता है, जिसे “एटम” कहते हैं। इनका विनाश नही किया जा सकता। तत्व की भिन्नता के आधार पर एटम के भी आकार, रचना, द्रव्यमान में भिन्नता पाई जाती है।
सन् 1800 के दौर में विशेषज्ञ जॉन डॉल्टन द्वारा यह विचारधारा रखी गयी कि द्रव्य का कोई भी रूप चाहे तत्व या यौगिक या मिश्रण; सभी बहुत से छोटे-छोटे कणों के मेल से निर्मित होते हैं। ये कण ही परमाणु कहलाते हैं। किसी भी रासायनिक अभिक्रिया द्वारा परमाणु का निर्माण नही किया जा सकता और न ही इनको खत्म किया जाना सम्भव है।
ऊपर दिए गए प्रसिद्ध वैज्ञानिकों के वर्णन से परमाणु में पाये जाने वाले बहुत से अभिलक्षणों के सम्बन्ध में ज्ञान प्राप्त हुआ है। इसी के साथ ओर भी कुछ ख्याति प्राप्त वैज्ञानिकों जैसे रदरफोर्ड, थॉमसन, बोर द्वारा परमाणु की संरचना के सम्बन्ध में प्रतिरूप तैयार किये गए थे। इनमें भी परमाणु में पाये जाने वाले अभिलक्षणों व इनकी भौतिक स्थिति के सम्बन्ध में प्रयोग करके कुछ तथ्यों से अवगत करवाया गया था।
परमाणु में इलेक्ट्रॉन बन्धुता का भी गुण पाया जाता है। इसमें ऋण आवेश वाले इलेक्ट्रॉन को आकर्षित करने की प्रवृत्ति पाई जाती है।
परमाणु के नाभिक के बाह्य ओर बादल की तरह इलेक्ट्रॉन मँडराते रहते हैं, इसे इलेक्ट्रॉन बादल भी कहा जाता है।
परमाणु के अन्य अभिलक्षणों के बारे में जानने के लिए हमें इसके नाभिक और इसमें पाये जाने वाले कणों जैसे प्रोटॉन, न्यूट्रॉन व इलेक्ट्रॉन के अभिलक्षित गुणों का भी ज्ञान होना आवश्यक है, जिन्हें जानने से हमे व्याख्यातमक रूप से परमाणु के अभिलक्षणों के बारे में पता लगेगा। ये निम्न प्रकार से है-
नाभिक के अभिलक्षण- परमाणु के मध्य भाग विद्युत के धन आवेश से युक्त होता है। इसे केन्द्रक या नाभिक कहा जाता है। यह प्रोटॉन व न्यूट्रॉन से मिलकर बना होता है, मिश्रित रूप में इन्हें न्यूक्लिऑन्स कहते हैं। चूँकि नाभिक परमाणु के अन्दर पाया जाता है, तो सम्भवतः यह आकार में अत्यन्त छोटा होता है, परन्तु परमाणु के द्रव्यमान का लगभग सारा भाग नाभिक में ही समाहित होता है।
प्रोटॉन के अभिलक्षण- ये कण विद्युत के धनात्मक आवेश से परिपूर्ण होते हैं। इसमें पाया जाने वाला विद्युत का धनावेश उतना ही होता है, जितना इलेक्ट्रॉन में ऋणात्मक आवेश होता है। प्रोटॉन का द्रव्यमान इलेक्ट्रॉन के द्रव्यमान से बहुत अधिक होता है अर्थात प्रोटॉन का द्रव्यमान इलेक्ट्रॉन के द्रव्यमान से लगभग 1850 गुना अधिक होता है।
न्यूट्रॉन के अभिलक्षण- इसके अभिलक्षित गुण है कि यह विद्युत के आवेश से अछूता होता है। इसपर न तो धन आवेश होता है और न ही ऋण आवेश अर्थात यह उदासीन प्रवृति वाला है। जितना द्रव्यमान प्रोटॉन में समाहित होता है, लगभग उतना ही द्रव्यमान न्यूट्रॉन में भी होता है।
इलेक्ट्रॉन के अभिलक्षण- यह विद्युत के ऋण आवेश से परिपूर्ण होता है। इसमें प्रोटॉन के धन आवेश के लगभग बराबर ही ऋण आवेश पाया जाता है। यह आकार में प्रोटॉन से छोटा होता है अर्थात इसका द्रव्यमान प्रोटॉन का लगभग 1850 वां हिस्सा होता है।
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