थॉमसन का परमाणु मॉडल – प्लम-पुडिंग मॉडल – Thomson atomic theory in Hindi

जे.जे.थॉमसन का जन्म 1856 में इंग्लैंड में हुआ था। इनका पूरा नाम जोसेफ़ जॉन थॉमसन था।

सर्वप्रथम थॉमसन द्वारा ही 1904 में परमाणु के सम्बन्ध में प्रतिरूप (मॉडल) तैयार किया गया।

थॉमसन ने कैथोड किरणों पर कुछ प्रयोग करके इलेक्ट्रॉन की खोज की थी तथा परमाणु की प्रवृत्ति की भी व्याख्यान किया।

थॉमसन के परमाणु मॉडल को तरबूज या प्लम-पुडिंग परमाणु मॉडल के नाम से भी जाना जाता है। थॉमसन ने अपने प्रयोगों द्वारा यह बात प्रस्तुत की थी कि परमाणु गोल आकृति वाले होते हैं तथा परमाणु में धनावेश से युक्त अनगिनत कण मौजूद रहते हैं, और ऋणावेश युक्त कण इलेक्ट्रॉन भी इसमें स्थित रहते हैं। ये दोनों कण परमाणु में इस प्रकार से स्थिति बनाये रखते हैं, जैसे तरबूज के भीतर इसके बीज थोड़ी-थोड़ी दूरी पर स्थित होते हैं या पुडिंग में किशमिश या चेरी अलग-अलग फैली हुई स्थिति में होती है।

इस कारण से थॉमसन के परमाणु मॉडल को तरबूज या प्लम-पुडिंग परमाणु मॉडल के रूप में जाना जाने लगा।

थॉमसन के द्वारा पेश किये गए वाक्यों के अनुसार परमाणु में विद्युत के धन आवेश वाले कण व ऋण आवेश युक्त इलेक्ट्रॉन कण समान रूप से फैले हुए होते हैं। इस कारण धनावेश कणों की बराबरी ऋणावेशित कणों से होने से परमाणु उदासीन प्रकृति का हो जाता है।

थॉमसन द्वारा इलेक्ट्रॉन की खोज की गयी थी। अपने इस मॉडल में भी उन्होंने स्पष्ट रूप से इलेक्ट्रॉन के नाम के साथ इसकी स्थिति की व्याख्या की थी, परन्तु प्रोटॉन नाम उन्होंने कहीं स्पष्ट न करते हुए इन्हें धनावेश युक्त कण कहा था।

कमियाँ

थॉमसन के मॉडल के बाद दूसरे वैज्ञानिकों द्वारा परमाणु के सम्बन्ध में और नए प्रयोग व खोज करने से अन्य तथ्य प्रस्तुत किये गए। इस कारण से थॉमसन के मॉडल की बहुत सी कमियाँ सामने आईं, जिनमें से कुछ हैं-

थॉमसन ने परमाणु के मध्य भाग में स्थित नाभिक या केन्द्रक की उपस्थिति के सम्बन्ध में न कोई व्याख्या की गयी थी और न कोई जानकारी दी थी।

परमाणु में पाये जाने वाले उदासीन प्रवृति के कण न्यूट्रॉन के अस्तित्व का भी उल्लेख नही किया गया था, अपितु यह कहा गया कि परमाणु स्वयं आवेश विहीन होता है।

थॉमसन ने बताया की तरबूज में पाये जाने वाले बीजों की भाँति परमाणु के धनावेश युक्त कण (प्रोटॉन) व इलेक्ट्रॉन भी बिखरे हुए रहते हैं। इलेक्ट्रॉन की सही स्थिति की व्याख्या नही की थी। जबकि बाद में हुए नए प्रयोगों व शोधों के आधार पर दूसरे विज्ञान विशेषज्ञों द्वारा यह तथ्य पेश किये गए कि प्रोटॉन नाभिक के भीतर की तरफ स्थित रहते हैं और इलेक्ट्रॉन नाभिक के बाहर चारों ओर गति करते रहते हैं।

प्रोटॉन व इलेक्ट्रॉन के क्रमशः धनावेश व ऋणावेश से युक्त होने पर तथा साम्यता के साथ एक-दूसरे के आसपास स्थित होने पर ये दोनों विपरीत होने के कारण एक-दूसरे को आकर्षित करके आपस में टकराकर स्वयं ही नष्ट हो जाएगे। इस कारण परमाणु में विद्युत आवेश नही होगा। थॉमसन द्वारा रखे गए इस पहलू द्वारा भी सत्यता प्रमाणित नही हुई थी।

निष्कर्ष

ऊपर दिए गए विवरण को पढ़ने से यह ज्ञात होगा कि सर जे.जे.थॉमसन द्वारा किये गए प्रयोग व विधियों के परिणामस्वरूप इलेक्ट्रॉन के अस्तित्व तथा इसपर पाये जाने वाले विद्युत के ऋणात्मक आवेश के बारे में सम्पूर्ण जगत को ज्ञान प्राप्त हुआ।

इस आधार पर यह निष्कर्ष निकाला जा सकता है कि परमाणु संरचना के सम्बन्ध में पहली बार प्रतिरूप पेश करने का श्रेय जे.जे.थॉमसन को जाता है। इनसे पहले किसी भी वैज्ञानिक द्वारा परमाणु की संरचना के सम्बन्ध में कोई प्रतिरूप सामने नही लाया गया था।

हालांकि यह परमाणु मॉडल अत्यधिक प्रचलित नही हो सका, क्योंकि इसमें कुछ तथ्य अस्पष्ट व अछूते रह गए थे, लेकिन इन सबके बावजूद भी थॉमसन द्वारा विज्ञान के विषय में नए-नए प्रयोग व शोध किये गए थे, जिनसे बहुत सी आवश्यक जानकारियां प्रदान की गयी,जो कि वर्तमान काल तक  सहयोगी रही हैं और आगे भी रहेंगी