प्रकृति में मौजूद विभिन्न प्रकार के जल स्त्रोतो में जब किसी तरह का बेकार अवांछनीय पदार्थ मिलकर जल को इस कदर दूषित कर देता है कि उसे पिकर मनुष्य एवं अन्य जीव-जंतु भयंकर बीमारी से ग्रसित हो जाते हैं जल में होने वाले इस परिवर्तन को जल प्रदूषण कहा जाता हैं।
जल प्रदूषण के कारण एवं निवारण इस प्रकार है।
1 कल कारखानों से निकले हुए मलबे को जल स्त्रोतों में प्रवाहित करना।
2 मछुआरे द्वारा मछली पकड़ने के लिए जलाशयों में बम विस्फोट करना या जहर का छिड़काव कर देना।
3 मरे हुए जीव जंतुओं को जल स्त्रोतों में फेंक देना।
4 नदियों या तालाबों में बर्तन धोना, कपड़ा धोते समय या मवेशियों को नहलाते समय साबुन का झाग शुद्ध जल मे मिलकर जल को अशुद्ध कर देती है।
5 पेट्रोल का आयात – निर्यात समुद्री मार्गो से किया जाता है इन जहाजों में से कई बार रिसाव हो जाता है या किसी कारण जहाज दुर्घटना का शिकार हो जाता है इसके डूबने से या तेल का समुद्र में फैलने से समुंद्र का शुद्ध जल अशुद्ध हो जाता है।
जल प्रदूषण को रोकने का उपाय इसप्रकार है।
कल कारखानों से निकले हुए कूड़े कचरे को सुद्धित करके ही प्रवाहित करना चाहिए।
मरे हुए जानवरों को पानी में फेंकने के बजाय मिट्टी में दफन कर देना चाहिए।
किसानों को जरूरत पड़ने पर ही उचित मात्रा में रासायनिक दवाओं का छिड़काव करना चाहिए।
गंदे कपड़े अथवा मवेशियों को जलाशयों में नहीं धोना चाहिए।
नदियों के जल में अनेकों कारखानों से निकले हुए रसायनिक पदार्थ, मल- मूत्र तथा दूसरे अवांछित पदार्थ जैसे कूड़ा- करकट या नालियों का गंदा पानी नदी में नहीं डालना चाहिए। उसी गंदे पानी को अनेकों जीव जंतु पीकर
अपना जीवन यापन करते हैं ऐसे में अगर वह इस गंदे पानी को पीते हैं तो वह कई प्रकार के जानलेवा बीमारियों से ग्रसित हो जाते हैं ।
अस्पतालों से फेंका गया अपशिष्ट जल में अनेकों रोगों के जीवाणु पैदा करते हैं कुछ स्थानों पर शवों को भी जल में बहा दिया जाता है।
मनुष्यो द्वारा की जाने वाली इन्ही सारी गतिविधियों के कारण जल में ऑक्सीजन की कमी हो जा रही है जिससे जल मे रहने वाले अनेकों जीवो की मृत्यु हो जा रही है।
जल प्रदूषण से अनेकों रोग हो रहे हैं जैसे- पीलीया, टाइफाइड , कलरा , डायरिया इत्यादि।
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