आज के तकनीकी युग में ऐसा कोई भी इन्सान नही है जो कम्प्यूटर के अस्तित्व के ज्ञान से अनभिज्ञ हो। कम्प्यूटर को संगणक भी कहा जाता है। बड़ी-बड़ी कम्पनियाँ, कारोबार, देश-विदेश से आयात-निर्यात, उद्योग आदि में होने वाले कार्य व हिसाब-किताब तथा लेनदेन आदि सब कुछ बिना गमन के ही सम्भव हो गया है तो इसका एक मुख्य कारण कम्प्यूटर भी है। यह हमारी तकनीक द्वारा प्रदत्त एक अमूल्य तोहफा है।
आजकल प्रत्येक क्षेत्र में चाहे बैंक हो या साधारण दुकान या बड़ी फैक्ट्री या अदालत या अन्य व्यवसाय अर्थात् लगभग सभी क्षेत्रों में कम्प्यूटर का अत्यधिक महत्व हो गया है। कम्प्यूटर की आवश्यकता, महत्व व विशेषताओं की बात की जाए तो ये शायद निरन्तर बनी ही रहेंगी तथा असीमित ही होती जाएंगी।
आइये जानते हैं कि कम्प्यूटर कैसे अस्तित्व में आया।
कम्प्यूटर का आविष्कार चार्ल्स बैबेज ने सन् 1822 में किया था। इन्होंने सर्वप्रथम “डिफरेंशियल इन्जन” नामक एक कम्प्यूटर का निर्माण किया था।
चूँकि सबसे पहले कम्प्यूटर का अस्तित्व चार्ल्स बैबेज के द्वारा ही सामने लाया गया, इसीलिए उन्हें कम्प्यूटर का जनक (पिता) भी कहा जाता है।
इसके अतिरिक्त समय व्यतीत होने के साथ-साथ कई तकनीकशास्त्रियों द्वारा भिन्न-भिन्न तरह के कम्प्यूटर निर्मित किये गए, जिनके बारे में हम आपको जानकारी उपलब्ध करवाने जा रहे हैं।
बैबेज के पश्चात सन् 1938 में यूनाइटेड स्टेट्स नेवी द्वारा “टारपेडो डेटा कम्प्यूटर” बनाया गया।
सन् 1939 में जर्मनी में सर कोर्नेड ज़ीउस द्वारा वेक्यूम ट्यूब्स की सहायता से एक कम्प्यूटर निर्मित किया गया। इसे “Z2” नाम दिया गया। बाद में धीरे-धीरे तकनीकी विकास के साथ-साथ इसी कम्प्यूटर में ओर अधिक नई युक्तियाँ जोड़ी गयी तथा बदलाव करके सन् 1941 में ओर बेहतर कम्प्यूटर बनाया गया, जिसे “Z3” नाम दिया गया।
सन् 1942 में भौतिकशास्त्री जॉन विंसेट तथा उनके साथी क्लिफोर्ड बेरी द्वारा वैक्यूम ट्यूब का प्रयोग करके प्रथम विद्युत कम्प्यूटर का प्रारूप तैयार किया गया।
सन् 1944 में हार्वर्ड विश्वविद्यालय के प्रोफेसर आइकेन द्वारा रिले संगणना मशीन का निर्माण किया गया, इस कम्प्यूटर का नाम “मार्क-1” रखा गया था। यह आकार में अत्यधिक बड़ी थी।
सन् 1946 में पेंसिल्वेनिया यूनिवर्सिटी के जॉन मौचलि और प्रेस्पर आईकेर्ट ने ‘इलेक्ट्रॉनिक न्यूमेरिकल इंटीग्रेटेड एन्ड कम्प्यूटर” (ENIAC) कम्प्यूटर का निर्माण किया, जो लगभग एक कमरे के आकार जितना बड़ा था तथा इसे बनाने के लिए लगभग 18000 वैक्यूम ट्यूब्स का इस्तेमाल किया गया था। यह वजन में भी अत्यधिक भारी था। इसे अमेरिका के सैनिक सहायता के लिए बनाया गया था। बाद में तकनीकी प्रगति के साथ-साथ सन् 1951 में इन्हीं भौतिकशास्त्रीयों द्वारा कॉमर्शियल कम्प्यूटर के रूप में “UNIVAC” कम्प्यूटर का भी विकास किया गया था।
सन् 1947 में ट्रांजिस्टर के आविष्कार के बाद कम्प्यूटर के विकास में ओर अधिक सहायता मिली, क्योंकि कम्प्यूटर में ट्रांजिस्टर का प्रयोग करने से ये आकार में छोटे हो गए तथा नई उन्नति की ओर कदम बढ़ाये गए।
सन् 1975 में पहले पर्सनल कम्प्यूटर (PC) को उजागर किया गया। इसे व्यावसायिक रूप से इस्तेमाल के लिए विक्रय हेतु बाजार में उपलब्ध करवाया गया। इस कम्प्यूटर को “MITS AITAIR 8800” के नाम से जाना गया।
सन् 1977 में विख्यात कम्पनी एप्पल द्वारा रंगीन ग्राफिक्स वाली विशेषताओं से बनाया गया प्रारूप “एप्पल 2” को पेश किया गया।
सन् 1981 में आई.बी.एम. ने माइक्रोसॉफ्ट डिस्क ओपरेटिंग सिस्टम (MS DOS) वाले कम्प्यूटर को लोकोपयोग के लिए पेश किया।
सन् 1984 में एप्पल द्वारा माउस व ग्राफिकल यूज़र इंटरफेस की विशेषता के साथ “मैकिटोंश कम्प्यूटर” बनाये गए।
सन् 1996 में सर्वप्रथम हाथ में रखकर चलाने योग्य कम्प्यूटर का आविष्कार किया गया, जिसे “पाल्म पायलट” का नाम दिया गया।
इस प्रकार से आप समझ सकते हैं कि किस प्रकार से 19वीं व 20वीं सदी में भिन्न-भिन्न तरह के कम्प्यूटर के आविष्कार किये गए तथा समय बीतने के साथ-साथ जैसे-जैसे तकनीकी विकास होता गया, वैसे-वैसे कम्प्यूटर में नई विशेषताओं का भी विकास जारी रहा तथा कम्प्यूटर का आकार भी छोटा होता गया।
कम्प्यूटर विभिन्न प्रकार के होते हैं। इनके बारे में भी हम आपको कुछ जानकारी उपलब्ध करवाने जा रहे हैं।
कार्य करने के आधार पर कम्प्यूटर तीन प्रकार के होते हैं-
एनालॉग कम्प्यूटर- खोज कार्यों व इंजीनियरिंग के क्षेत्र में एनालॉग कम्प्यूटर का प्रयोग किया जाता है, क्योंकि इनका प्रयोग मापन में किया जाता है, जैसे- तापमान, गहराई, दबाव, गति आदि के उचित माप लेना।
डिजिटल कम्प्यूटर – ये कम्प्यूटर बाइनरी संख्या 0 व 1 के आधार पर कार्य करते हैं। डिजिट परिमाण प्राप्त करने के लिए इनका प्रयोग शिक्षा व बैंक के क्षेत्र मे तथा व्यावसायिक उपयोग में किया जाता है।
हाइब्रिड कम्प्यूटर- यह ऐसे कम्प्यूटर होते हैं, जिनमे एनालॉग व डिजिटल दोनों ही विशेषतायें पाई जाती हैं। कुछ क्षेत्रों में मापन की आवश्यकता के साथ-साथ परिणामों को डिजिट के रूप में भी पेश करना आवश्यक होता है, वहीं इनका उपयोग किया जाता है, जैसे- चिकित्सालयों में।
इनके अतिरिक्त आकार व उद्देश्य के आधार पर चार प्रकार के कम्प्यूटर होते हैं-
माइक्रो कम्प्यूटर- यह साधारण रूप से प्रयोग में लिया जाने वाला व्यक्तिगत कम्प्यूटर (PC) है। इसका प्रयोग दिन-प्रतिदिन के कार्यों व डेटा सुरक्षित रखने, संगीत सुनने व इंटरनेट आदि हेतु किया जाता है।
मिनी कम्प्यूटर- यह एक साथ कई कार्यों को करने के उद्देश्य पूरा करने वाला तथा एक से अधिक उपयोगकर्ताओं द्वारा संचालित मध्यम आकार का कम्प्यूटर होता है।
मेनफ़्रेम कम्प्यूटर- ये बहुत बड़े आकार के कम्प्यूटर होते हैं। जिनका प्रयोग भी बड़े उद्देश्यों के लिए कई फैक्ट्रियों व कम्पनियों में किया जाता है।
सुपर कम्प्यूटर- यह नाम से ही स्पष्ट है कि अत्यधिक विशालकाय कम्प्यूटर, जिनका प्रयोग विज्ञान में अनुसन्धान सम्बन्धी व मौसम विभागों द्वारा किया जाता है। ये अत्यन्त तीव्र कार्यक्षमता वाले होते हैं।
भारत में 1 जुलाई 1991 में सर्वप्रथम “परम 8000” नामक सुपर कम्प्यूटर C-DAC द्वारा निर्मित किया गया|
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