अल्ट्रासाउंड या सोनोग्राफी शरीर के भीतर के अंगो एवं कोशिकाओं के देखने के लिए प्रयोग में लायी जाती है| अल्ट्रासाउंड करने के लिए विशेष प्रकार की मशीन का इस्तेमाल किया जाता है जिससे रेडियोएक्टिव किरने निकलती है एवं इसे हम सुन नहीं सकते|
इसके अंतर्गत शरीर के जिस भाग का अल्ट्रासाउंड होना है वह विशेष प्रकार की जेल लगाकर मशीन से जुड़े उपकरण को शरीर के उस भाग पर अच्छे से आगे पीछे ऊपर नीचे घुमाया जाता है जिससे अंदर की स्थिति का पता लगाया जा सके|
अल्ट्रासाउंड करने में 15 से 20 मिनट लगते है एवं इस प्रक्रिया में कोई दर्द नहीं होता| गर्भावस्था के दौरान शिशु के स्वास्थ्य का पता लगाने के लिए माँ का अल्ट्रासाउंड किया जाता है|
अल्ट्रासाउंड् के दौरान शरीर के अंदर यदि कुछ भी गडबडी हो तो उसकी इमेज स्क्रीन पर दिखाई दे जाती है जिसे बाद में प्रिंट कर लिया जाता है| आजकल 3d, 4d अल्ट्रासाउंड काफी प्रचलन में है जिससे और भी उच्च क्वालिटी से अंदरूनी अंगो की छवि ली जा सकती है|
अल्ट्रासाउंड तकनीक के फायदे:
अल्ट्रासाउंड तकनीक का इस्तेमाल भ्रूण की जाँच के लिए, दिल की बीमारियों का पता लगाने के लिए, पित्ते की पथरी का पता लगाने के लिए, थाइरॉइड ग्रंथि के आकलन के लिए, आदि में किया जाता है|
इस प्रक्रिया के द्वारा कैंसर एवं कोई गाँठ आदि का भी पता लगाया जा सकता है| अथवा छाती में किसी प्रकार का इन्फेक्शन आदि का पता लगाया जा सकता है|
सोनोग्राफी प्रक्रिया में मरीज को किसी प्रकार का दर्द का एहसास नहीं होता साथ ही इसमें समय भी काफी कम लगता है|
इसके द्वारा रोग को जड़ से पकडकर शीघ्रता से उसका निदान करना संभव हो पाया है साथ ही गर्भ में पल रहते शिशु की किसी प्रकार की तकलीफ अल्ट्रासाउंड द्वारा देखी जा सकती है|
अल्ट्रासाउंड तकनीक के नुकसान:
अल्ट्रासाउंड टेस्ट के दौरान रेडियोएक्टिव किरणों को शरीर के अंदर से गुजारा जाता है जिससे DNA सेल्स को हानि पहुँच सकती है एवं बहुत ज्यादा अल्ट्रासाउंड करवाने से कैंसर एवं ट्यूमर आदि बनने का खतरा बना रहता है|
शिशु के अधिक अल्ट्रासाउंड उसके दिमागी विकास को बाधित कर सकते है जिससे मस्तिष्क पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है|
सोनोग्राफी द्वारा भ्रूण की लिंग जाँच करना दंडनीय अपराध है किन्तु फिर भी अधिक पैसे वसूल करके लिंग जाँच की जाती है जो की इस तकनीक का गलत इस्तेमाल है एवं क़ानूनी एवं नैतिक दोनों तरह से ये गलत है|
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