मानव जीवन में ऋतुओं का विशेष महत्व है। हर ऋतु का अपना अलग आनंद अपनी अनूठी विशेषता है।
पर कैसे बदलती हैं ऋतुएं ?
इसका सीधा सम्बन्ध, सूर्य और धरती की स्थिति से है। धरती न केवल सूर्य के चारों और चक्कर लगाती है, बल्कि स्वयं अपनी धुरी पर भी घूमती है। और यह धुरी पूरी तरह खड़ी न होकर 23.5 डिग्री के कोण पर झुकी हुई है। यही हल्का सा झुकाव ऋतुओं के निरंतर परिवर्तन का कारण बन जाता है।
सूर्य के चारों ओर धरती की यात्रा के दौरान, उसकी स्थिति में परिवर्तन के साथ ही, धरती को मिल रही सूर्य की ऊष्मा में भी परिवर्तन आता है। जिस तरह रोटी बनाते समय रोटी का जो भाग चूल्हे की आग के ज़्यादा नज़दीक होता है अधिक गरम हो जाता है, उसी तरह धरती का जो गोलार्द्ध सूर्य के अधिक निकट होता है वहाँ ग्रीष्म ऋतू और जो गोलार्द्ध अपेक्षाकृत कुछ दूर होता है, वहाँ शरद ऋतु का चलन होता है।
इसका सीधा अर्थ ये भी है के जब उत्तरी गोलार्द्ध में ग्रीष्म ऋतू होती है, तब दक्षिणी गोलार्द्ध में शरद ऋतू होती है। और वर्ष भर यही घूर्णन, अलग अलग ऋतुओं को जन्म देता है। ऋतुओं के साथ साथ, दिन और रात का भी परिवर्तन सूर्य की स्थिति पर निर्भर रहता है।
सूर्य की ऊष्मा का छितराव न केवल धरती के चलन पर, बल्कि हमारे ग्रह के आकर पर भी निर्भर करता है। साधारणतया जो देश भूमध्य रेखा से जितने ही दूर होते हैं, वहाँ उतनी ही सर्दी पायी जाती है। इसी तरह ध्रुवों पर हमारे ग्रह की सबसे ठंडी जलवायु पायी जाती है।
साथ ही भूमध्य रेखा यानि वह काल्पनिक रेखा जो धरती को बिलकुल बीच से बांटती है, वहाँ ऋतुओं में कोई विशेष परिवर्तन नहीं देखा जाता।
वर्ष भर वहाँ तीखी गर्मी की स्थिति बनी ही रहती है, क्यूंकि सूर्य की धुप वर्ष भर एक ही तीव्रता से वहाँ पड़ती ही रहती है। धरती का ये भाग, प्रतिदिन लगभग बारह घंटों तक सूर्य का प्रकाश प्राप्त करता है। परन्तु इसका अर्थ ये कतई नहीं के यहां प्रकृति को कोई नुक्सान पहुंचा हो।
भूमध्य रेखा की विशिष्ट जल वायु अनेक तरह के जीव जंतुओं, और वनस्पतियों के लिए बिलकुल उपयुक्त है। और सैंकड़ों प्रजातियां यहां पूरी तरह से फल फूल रही हैं। यही गर्मी और सर्दी फिर बाकी की ऋतुओं का कारण बन जाती हैं। वर्षा गरमी से भाप बने जल के कारण और वसंत, शरद से ग्रीष्म ऋतू में आगमन पर वनस्पतियों में आये परिवर्तन को कहा जाता है।
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